________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धर्म-दर्शन को अंग्रेजी माध्यम में प्रस्तुत करने में श्री जैनी का महत्त्वपूर्ण एवं अविस्मरणीय योगदान है।
जैन पारिभाषिकों को समझने के लिए यह एक प्रतिनिधि ग्रन्थ है। इस कोश का उद्देश्य एक ही जैन पारिभाषिक के विभिन्न अनुवादों में भिन्न-भिन्न अंग्रेजी पर्यायों से बचाव करके एकरूपता पैदा करना है और जैन-जैनेतर पाठकों के मन में सम्भावित दुविधा या भ्रान्ति का निवारण करना है। इसका मूल आधार पं. गोपालदास बरैयाकृत जैन सिद्धान्त प्रवेशिका मानी जाती है।
बृहज्जैन शब्दार्णव- यह कोश बी.एल.जैन और शीतलप्रसाद जैन ने तैयार किया था। इसका सन् 1924 और 1934 में दो भागों में प्रकाशन किया गया।
जैन कक्को - यह एक लघु कोश है। इसके लेखक बलभी छगनलाल हैं। इसका प्रकाशन अहमदाबाद से हुआ था। इस कोश में प्राकृत शब्दों का गुजराती में अनुवाद किया गया है।
इग्लिंश प्राकृत डिक्शनरी- इसकी रचना एच.आर. कापडिया ने की थी। सन् 1941 में सूरत से इसका प्रकाशन हुआ था। ___ अल्पपरिचित सैद्धान्तिक शब्दकोश- इस कोश का निर्माण आनन्दसागर सूरि द्वारा किया गया। सन् 1954 में इसका पहला भाग सूरत से प्रकाशित हुआ। इस कोश में जैन सैद्धान्तिक शब्दों को संक्षेप में विश्लेषित किया गया है। बाद में इसके तीन भाग और प्रकाशित हुए।
लेश्याकोश- इस कोश के सम्पादक मोहनलाल बांठिया और श्रीचन्द चोरडिया हैं। सन् 1966 में कलकत्ता से इसका प्रकाशन हुआ। इसमें सम्पूर्ण जैन वाङ्मय को सार्वभौमिक दशमलव वर्गीकरण पद्धति से 100 वर्गों में विभाजित किया गया है और आवश्यकता के अनुसार उसे यत्र-तत्र परिवर्तित भी किया गया है। मूल विषयों में से अनेक विषयों के उपविषयों की सूची भी इसमें दी गयी है। ग्रन्थ के प्रस्तुतीकरण के तीन आधार हैं- 1. पाठों का मिलान, 2. विषय के उपविषयों का वर्गीकरण तथा 3. हिन्दी अनुवाद। मूल पाठ को स्पष्ट करने के लिए टीकाकारों का आधार लिया गया है। यद्यपि इस संकलन को श्वेताम्बर आगम-ग्रन्थों तक सीमित रखा गया है, तथापि सम्पादन, वर्गीकरण तथा अनुवाद के कार्य में नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति आदि व्याख्याओं तथा सिद्धान्त-ग्रन्थों का यथोचित उपयोग हुआ है। कोश में 43 ग्रन्थों का उपयोग हुआ है। सम्पादक ने दिगम्बर-सम्प्रदाय-गत ग्रन्थों के आधार पर स्वतन्त्र लेश्याकोश प्रकाशित करने का सुझाव दिया है।
विद्वद् विनोदिनी- इसका संकलन एवं सम्पादन भागचन्द्र जैन भास्कर ने किया है। इसमें संस्कृत, पालि, प्राकृत, हिन्दी और गुजराती साहित्य में उपलब्ध प्रहेलिकाओं
कोश-परम्परा एवं साहित्य :: 595
For Private And Personal Use Only