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ही करना चाहिए, क्योंकि एक-समय में और एक-परिस्थिति में एक शब्द का अर्थ कुछ होता है और परिस्थिति या समय के बदलते ही उस शब्द का अर्थ भी बदल जाता है।
इसप्रकार स्पष्ट है कि जैन दार्शनिकों ने शब्द के अवधारणात्मक पक्ष पर ही नहीं, बल्कि उसके दार्शनिक पक्ष पर, उसके अर्थ के साथ होने वाले सम्बन्ध पर, उसके अर्थबोध पर एवं उसके स्वरूप पर अपनी अलग पहचान रखते हुए विचार किया है और अपने इसप्रकार के विचार से सम्पूर्ण भारतीय भाषा-शास्त्रीय चिन्तन या भारतीय भाषा-शब्दचिन्तन को समृद्ध किया है।
जैनों का भाषा-चिन्तन :: 569
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