________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जा रहा है।
नाममाला अपरनाम धनञ्जयनाममाला - महाकवि धनञ्जय ( 813ई.) के तीन कोश उपलब्ध हैं—1. नाममाला, 2. अनेकार्थनाममाला, और 3. अनेकार्थ निघंटु । इन्होंने विषापहार और द्विसन्धानकाव्य भी लिखे हैं । इनके सन्धान- काव्यों की अनेक कवियों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। नाममाला के अन्त में प्राप्त पद्य से ज्ञात होता है कि कवि धनञ्जय की लोक में द्विसन्धान - कवि के रूप में कीर्ति व्याप्त थी
प्रमाणमकलङ्कस्य पूज्यपादस्य लक्षणम् । द्विसन्धानकवेः काव्यं रत्नत्रयमपश्चिमम् ।।
अर्थात् भट्ट अकलंकदेव का प्रमाणशास्त्र, पूज्यपाद देवनन्दि का लक्षण (व्याकरण) शास्त्र और द्विसन्धानकवि का काव्य, ये तीनों अपूर्व रत्नत्रय हैं । वादिराजसूरि ने अपने पार्श्वनाथचरित के प्रारम्भ में द्विसन्धान काव्य की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि धनञ्जय द्वारा कहे गये अनेक सन्धान (अर्थ भेद) वाले और हृदय स्पर्शी वचन कानों को ही प्रिय क्यों लगेंगे, जबकि अर्जुन के द्वारा छोड़े जाने वाले अनेक लक्ष्यों के भेदक मर्मभेदी बाण कर्ण को प्रिय नहीं लगते ।
अनेक भेदसन्धानाः खनन्तो हृदये मुहु: । बाणा धनञ्जयोन्मुक्ताः कर्णस्यैव प्रियाः कथम्।।
नाममाला - सरल और सुन्दर शैली में लिखा गया एक संस्कृत - कोश है। इसमें व्यवहार में प्रयुक्त होने वाले सभी पर्यायवाची शब्दों का संकलन किया गया है। इसमें कवि ने 200 श्लोकों में संस्कृत की शब्दावली का चयन किया है और गागर में सागर भरने की युक्ति चरितार्थ की है। इस कोश में किसी एक शब्द से अन्य शब्द बनाने की प्रक्रिया बताई गयी है, जो अपने-आप में निराली है। किसी अन्य कोश में यह पद्धति दिखाई नहीं देती। इस पद्धति का बड़ा लाभ यह है कि एक प्रकार के पर्यायवाची शब्दों के ज्ञान से दूसरे प्रकार के पर्यायवाची शब्दों का ज्ञान सहजतया हो जाता है। जैसे- पृथ्वी के नामों के आगे 'धर' या धर के पर्यायवाची शब्द जोड़ देने से वृक्ष
नाम हो जाते हैं। इसी प्रकार जल शब्द के आगे 'स्वामिन्' आदि शब्द जोड़ देने से मछली के नाम, वृक्ष शब्द के पर्यायवाची शब्दों के आगे 'चर' शब्द जोड़ देने से बन्दर के नाम, जल शब्द के पर्यायवाची शब्दों के आगे 'प्रद' शब्द जोड़ देने से 'बादल' के नाम, 'उद्भव' शब्द जोड़ देने पर 'कमल' के नाम, एवं 'धर' जोड़ देने से समुद्र के नाम बन जाते हैं I
इस प्रकार महाकवि धनञ्जय ने अपनी इस वैज्ञानिक पद्धति द्वारा इस कोश को
कोश-परम्परा एवं साहित्य : : 585
For Private And Personal Use Only