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श्लोक हैं। पंचम पञ्चस्वर कांड में 57 श्लोक हैं। छठे षट्स्वरकांड में 7 श्लोक हैं तथा सातवें अव्ययकांड में 68 श्लोक हैं। इस कोश का मेदिनी और विश्वप्रकाश कोश पर बहुत प्रभाव पाया जाता है। __ निघंटु शेष- यह एक वनस्पति कोश है। हेमचन्द्रकृत इस कोश में छः कांड हैं। प्रथम वृक्षकांड में 181 श्लोक हैं। द्वितीय गुल्मकांड में 105 श्लोक हैं। तृतीय लताकांड में 44 श्लोक हैं। चतुर्थ शाककांड में 34 श्लोक हैं। पंचम तृणकांड में 17 श्लोक हैं और षष्ठ धान्यकांड में 15 श्लोक हैं। निघंटु की कुल श्लोक संख्या 396 है। वैद्यक शास्त्र के लिए इस कोश की बहुत उपयोगिता है। अनेकार्थ संग्रह के टीकाकार के अनुसार, निघंटु लिखने के समय हेमचन्द्र के समक्ष धन्वन्तरि निघंटु, राजकोश निघंटु, सरस्वती निघंटु आदि औषधिकोश विद्यमान थे। हेमचन्द्र ने उक्त सभी कोशों का मन्थन कर नया निघंटु तैयार किया है। डॉ. बुल्लर ने इसे एक श्रेष्ठ वनस्पति कोश (Botanical Dictionary) कहा है।
देशीनाममाला- प्राकृत देशी शब्दों के ज्ञान के लिए यह प्रथम कोश है। इस कोश की रचना का प्रयोजन बताते हुए हेमचन्द्र ने लिखा है कि इसकी रचना सिद्धहेमशब्दानुशासन के अष्टम अध्यायगत प्राकृत भाषाओं के व्याकरण की पूर्ति हेतु की गयी है
इय रयणावलिणामो देहीसद्दाण-संगहो एसो।
वायरण सेसलेसो रइयो सिरिहेमचन्दमुणिवइणा ।। 8.77) दूसरी बात यह है कि दुर्बोध एवं दुःसन्दर्भित शब्दों के अर्थज्ञान के लिए यह ग्रन्थ लिखा गया है (1.3)।
देशीनाममाला के दो और नाम मिलते हैं-देसीसद्दसंगहो और रयणावलि। सामान्यतः प्राकृत भाषा में तीन प्रकार के शब्द पाये जाते हैं-(1) तत्सम अर्थात् संस्कृत के समान, (2) तद्भव अर्थात् संस्कृत से विकृत होकर आये, और (3) देशज अर्थात् व्याकरण आदि सस्कारों से रहित, केवल परम्परा-प्रसिद्ध शब्द। इस कोश में देशज या देश्य शब्दों का ही संकलन है। कोशकार के अनुसार, जो शब्द न व्याकरण से सिद्ध हो, न संस्कृत कोशों में प्रसिद्ध हो और न लक्षणा शक्ति से सिद्ध हो, उसे देशी कहते हैं (1.4)। देशीनाममाला में सभी शब्द देशी नहीं हैं। इसमें संकलित शब्दों की कुल संख्या 3978 है, जिनमें तत्सम 100, संशययुक्त तद्भव 528, गर्भिततद्भव 1850, और अव्युत्पादित (देशी) शब्द 1500 हैं।
वर्णक्रम से लिखे गये इस कोश में आठ अध्याय हैं और कुल 783 गाथाएँ हैं। जैसे धनपालकवि की पाइयलच्छीनाममाला प्राकृत के आरम्भिक अभ्यासियों के लिए
कोश-परम्परा एवं साहित्य :: 589
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