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हैं। ये भूतल पर स्थिर रहकर अँगुली से सूर्य-चाँद का स्पर्श कर सकते हैं (प्राप्ति)। जल की तरह पृथ्वी पर तथा पृथ्वी के समान जल पर चल सकते हैं (प्राकम्य)। इनके सिवाय सारे संसार में प्रभुत्व स्थापित करने की सामर्थ्य (ईशित्व) और जीवों को वश में करने की शक्ति (वशित्व) भी इनमें होती है। देवों में जघन्य आयु 10 हजार वर्ष तथा उत्कृष्ट आयु 33 सागर होती है।
लौकान्तिक देव- जिनके लोक (संसार) का अन्त आ गया है और जो ब्रह्मलोक के अन्त में रहते हैं, ऐसे निकट संसारी देव 'लौकान्तिक' देव हैं। ये मनुष्य पर्याय पाकर नियम से मोक्ष जाते हैं।141 ये 14 पूर्वो के पाठी, ज्ञानोपयोगी, संसार से उद्विग्न, अनित्यादि भावनाओं को भाने वाले, शुक्ल-लेश्या-धारी, अति-विशुद्ध सम्यग्दृष्टि होते हैं। विषय-विरक्त होने से 'देवर्षि' कहे जाते है। तीर्थंकरों के दीक्षा-कल्याणकों में उनके वैराग्य की प्रशंसा/अनुमोदना करने हेतु नीचे मनुष्यलोक में आते हैं। ये 5 हाथ ऊँचे होते हैं। इनकी आयु 8 सागरों की होती है।
वैमानिकों में कौन उत्पन्न होते हैं ?- संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य और तिर्यंच ही वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं। मिथ्यादृष्टि 12वें स्वर्ग तक तथा अविरत सम्यग्दृष्टि और देशव्रती मनुष्य-तिर्यंच 16वें अच्युत स्वर्ग तक उत्पन्न होते हैं। 16वें स्वर्ग के ऊपर जिनलिंगधारी मुनिराज ही जन्म लेते हैं। मिथ्यादृष्टि मुनि भी जिनलिंग के प्रभाव से 9 वें ग्रैवेयक तक उत्पन्न होते हैं। 14 पूर्वधारी मुनिराज लान्तव स्वर्ग से नीचे उत्पन्न नहीं होते। 42
आधुनिक विज्ञान की खोज-आधुनिक विज्ञान ने यन्त्रों/उपकरणों और प्रयोगों के माध्यम से मध्यलोकान्तर्गत अनवस्थित भूमंडल के सीमित रूपमात्र को जाना है, अवस्थित/ शाश्वत/स्थिर भूभाग को नहीं जान पाया है। सीमित भूमंडल-द्वीप-महाद्वीप, तरंगायित जलमंडल, वाष्पयुक्त गैसीय वायुमंडल, गतिमान सौर्यमंडल, अस्थिर गरम भूगर्भ तथा अन्तरिक्षान्तर्गत ब्रह्मांड की कल्पना ही आज के विज्ञान की खोज है। ___ अन्तरिक्ष विज्ञानियों के अनुसार- इस असीम आकाश में अनेक नीहारिकाएँ (गैलेक्सीज) हैं। एक नीहारिका में अनेकों सौर-परिवार हैं और एक सौर-परिवार में एक तारा (सूर्य) चन्द्रमा अनेक ग्रह-उपग्रह तारे तथा उल्का-समूह होते हैं। सौर्य-- परिवार का केन्द्र सूर्य होता है। ब्रह्मांड (यूनिवर्स) में ऐसे करोड़ों सौर्य-परिवार हैं। इस तरह असीम आकाश में असंख्य भ्रमणशील गोलाकार पिंड है। हमारा सौर्य-परिवार भी किसी नीहारिका के छोर पर आकाशगंगा (Milky way) में स्थित है और अपनी ही परिधि में धीमी गति से गतिमान है। ___आधुनिक विज्ञान इस सौर्य-परिवार को लेकर ही सृष्टि/लोक की विवेचना करता है। त्रिलोक की अवधारणा आधुनिक विज्ञान में न होने से ऊर्ध्व लोक (स्वर्गों) और
550 :: जैनधर्म परिचय
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