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निकटतम संख्यात्मक मान निकालने में वह सम्भवतः सहायक हुई।
जैन गणित के प्रख्यात विशारद डॉ. एल.सी. जैन के अनुसार जैन गणित की, सेट सिद्धान्त सम्बन्धी अवधारणा के विकास के अनुक्रम में, राशि के समानार्थी रूप में, समूह, पुंज, ओघ, वृन्द, संपत, समुदाय, पिण्ड, अवशेष, अभिन्न तथा सामान्य आदि का उपयोग किया गया है, जो आधुनिक गणितीय चिन्तन के तथ्यों को संस्पर्शित करता है। सेट इकाई की निर्मिति में समय द्वारा तात्कालिक एवं अविभाज्य घटक के रूप में समय को, किसी कण-विशेष द्वारा स्थान-विशेष पर विन्यस्त कण को प्रदेश, अविभाज्य सम्बद्ध भाग को अविभागी प्रतिच्छेद, त्वरित एवं प्रभावी बन्ध को समयप्रबन्ध आदि द्वारा सम्बोधित कर, आधुनिक गणितीय अवधारणाओं के समतुल्य चिन्तन का अभिप्रस्तुतीकरण किया गया है। राशियों का सत्तात्मक और रचनात्मक रूप में चिह्नित किया जाना उनके अस्तित्वशील तथा रचनाशील रूप की भी पहचान कराता है।
गणितीय मापन की इकाई को भी जैनाचार्यों ने परिभाषित किया है। पुद्गल के सूक्ष्म किन्तु अविभाज्य अंश को परमाणु की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। अनन्तानन्त परमाणु-समूह का सम्मिलन अवसंज्ञा स्कन्ध की निर्मिति करता है और आठ अवसंज्ञा स्कन्धों का समुच्चय एक संज्ञासंग स्कन्ध के नाम से अभिहित होता है। आठ संज्ञासंग स्कन्धों का समूह एक त्रुटिरेणु और आठ त्रसरेणु मिलकर एक रथरेणु बनाते हैं, जो एक उत्तम भोगभूमि का बालाग्र होता है। आठ उत्तम भोगभूमि के बालाग्र से एक मध्यम भोगभूमि का बालाग्र निर्मित होता है और आठ मध्यम भोगभूमि के बालाग्र से एक जघन्य भोगभूमि का बालाग्र बनता है। आठ जघन्य भोगभूमि के बालाग्र से एक मानवीय कर्मभूमि का बालाग्र बनता है। आठ कर्मभूमि के बालाग्र से एक लींक निर्मित होती है और आठ लींकों से एक जूं बन जाती है। आठ जूं एक यव बनाती हैं और आठ यव का एक उत्सेधांगुल बनता है। 500 उत्सेधांगुल का एक प्रमाणांगुल बनता है, जो अवसर्पिणी काल के प्रथम चक्रवर्ती का आत्मांगुल है।
__ अन्य परिमापन की इकाइयों में प्रमुख रूप से अंगुल, बिलस्त, हाथ, गज, धनुष, कोस, योजन, महायोजन और राजू शामिल हैं। 6 अंगुल एक पाद बनाते हैं और बारह अंगुल एक बिलस्त। दो बिलस्त से एक हाथ की माप होती है, दो हाथ एक गज बनाते हैं, दो गज एक धनुष, तो दो हजार धनुष एक कोस की इकाई निर्मित करते हैं। चार कोस से एक छोटा योजन बनता है और दो हजार कोस एक महायोजन का निर्माण करते हैं। असंख्यात महायोजन मिलकर एक राजू बनाते हैं। मध्यलोक के अंसख्यात द्वीप व समुद्र एक राजू के विस्तार में समाहित हैं। राजू एक ऐसी ही मापन इकाई है। सात राजू मिलकर एक जग-श्रेणी बनाते हैं; जो एक बड़ी खगोलीय इकाई को इंगित करता है। लोक का चौकोर आकार निरूपित किया गया है तथा उसका माप
486 :: जैनधर्म परिचय
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