________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
चयनित सार्थक जन्य बीज राशियों से किसी समकोण की रचना, एक निश्चित भुजा वाले विभिन्न समकोण त्रिभुजों की रचना, निश्चित परिमाप अथवा क्षेत्रफल वाले अनेक समकोण त्रिभुजों की रचना, निश्चित क्षेत्रफल अथवा अनुपात के आयत युगलों की रचना के नियम दिये हैं । वस्तुतः एक निश्चित कर्ण माना C वाले विभिन्न समकोणों की शेष दो भुजाओं के मापों के समूहों का ज्ञान करने हेतु जो तथाकथित Fibonacci Sequence प्रचलित है, वह 1202 A. D. में Fibonacci एवं Vieta (1580 A.D.) द्वारा पुनः आविष्कृत होने के पूर्व 850 ई. में महावीराचार्य द्वारा प्रतिपादित हो चुका था 142 यथा
कृत युग्म
त्र्योज
C.
द्वापर युग्म कल्योज
www. kobatirth.org
4n+3
m-n
_m2 + n2
14. आधुनिक बीजगणित (Modern Algebra) के मूलाधार समुच्चय की अभिधारणा ही नहीं अपितु उसके भेद, उपभेद, उदाहरण उन पर संक्रियाएँ, षट्खण्डागम की धवला टीका में राशि - नाम से उपलब्ध हैं । राशि यहाँ समुच्चय का ही पर्याय है। एकैकी संगति (One-one Mapping) सुक्रमबद्धी प्रमेय (Well Ordering Theorem) का वहाँ प्रयोग हुआ है । विश्वविख्यात जैन - कर्म - सिद्धान्त का आधुनिक निकाय सिद्धान्त से अद्वितीय साम्य है । वहाँ कर्मों के आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा में जिन पद्धतियों का विवेचन है, वे सब वर्तमान शताब्दी में विकसित निकाय सिद्धान्त (System Theory) के लगभग समकक्ष हैं 3
=
2
4n+2
4n+1
यहाँ
C,
15. स्थानांग सूत्र ( ठाणं) में संख्यात संख्याओं का वर्तमान की अपेक्षा अधिक विस्तृत वर्गीकरण मिलता है ।14
4n+4
=
(
2m n
=
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
_m2 + n2
-
Jc
3, 4, 11,..........
4, 8, 12,........
2, 6, 10,.
1, 5, 9,
n =
0, 1, 2, 3..
संक्षिप्ततः जैन गणित जैन साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा है, जिसके अध्ययन के बिना जैनागमों विशेषतः करणानुयोग के ग्रन्थों को सम्यक् प्रकार से हृदयंगम करना शक्य नहीं है। गणित के क्षेत्र में जैनाचार्यों का योगदान प्रशंसनीय एवं अनेक मौलिकताओं से युक्त है, किन्तु अभी अनेक गणितीय पाण्डुलिपियाँ अप्रकाशित हैं। इसके प्रकाश में आने के बाद ही गणित के क्षेत्र में जैनाचार्यों के योगदान अर्थात् जैन गणित का वृहत्तर पक्ष प्रकाश में आ सकेगा ।
For Private And Personal Use Only
गणित : : 507