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होती तथा इनके शरीर में निगोदिया जीवों का भी अभाव होता है।
नारकियों की आयु- प्रथम नरक में उत्कृष्ट आयु 1 सागर, द्वितीय में 3 सागर, तृतीय में 7 सागर, चतुर्थ में 10 सागर, पाँचवें में 17 सागर, छठे में 22 सागर और सप्तम नरक में उत्कृष्ट आयु 33 सागर है। प्रथम नरक की जघन्य आयु 10 हजार वर्ष है। शेष नरकों की जघन्य आयु पूर्ववर्ती नरक की उत्कृष्ट आयु के बराबर है।
अवगाहना- पहले नरक के नारकियों के शरीर की ऊँचाई 31% हाथ है। नीचे के नरकों में यह उत्तरोत्तर दूनी-दूनी होती गयी है। __ अवधिज्ञान- नरकों में उत्पन्न होते ही पर्याप्तियाँ पूर्ण होने पर भव-प्रत्ययअवधिज्ञान प्रकट हो जाता है। मिथ्यादृष्टियों का अवधिज्ञान विभंगावधि/कु-अवधि कहलाता है और सम्यग्दृष्टियों का ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है। नरकों में इनके क्षेत्र का प्रमाण इस प्रकार है- प्रथम नरक में अवधि के क्षेत्र का प्रमाण 4 कोश (1 योजन) है। आगे के नरकों में आधा-आधा कोश घटता जाता है। सातवें में अवधिज्ञान का क्षेत्र मात्र एक कोश ही रहता है।
नरकों में उत्पत्ति के कारण26- बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह की तीव्र लालसा, हिंसादि क्रूर कर्मों में निरन्तर प्रवर्तन, इन्द्रिय-विषयों में तीव्र आसक्ति, मरते समय तीव्र आर्त-रौद्र क्रूर परिणाम, सप्त व्यसनों में लिप्तता-जैसे क्रूरकर्मों में संलग्न क्रूर स्वभावी जीव नरकायु का बन्ध कर नरकों में जन्म लेते हैं।
निरन्तर उत्पत्ति की अपेक्षा-कोई जीव पहले में 8 बार, दूसरे में 7 बार, तीसरे में 6 बार, चौथे में 5 बार, पाँचवें में 4 बार, छठे में 3 बार और सातवें में दो बार जन्म ले सकता है।
नरकों में कौन जन्मते हैं ? (गति)-सामान्यतः मनुष्य और तिर्यंच ही नरकों में जन्म लेते हैं, देव और नारकी नहीं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पहले नरक तक, सरीसृप दूसरे तक, पक्षी तीसरे तक, सर्प चौथे तक, सिंह पाँचवें तक, स्त्री छठे तक और मनुष्य तथा मछली सातवें नरक तक में जन्म ले सकते हैं।
नरक से निकले जीवों की उत्पत्ति के नियम-(आगति)291. नरक से निकलकर नारकी जीव नियमतः कर्मभूमि के गर्भज संज्ञी पंचेन्द्रिय
तिर्यंच और मनुष्यों में ही जन्म लेते हैं। 2. सातवें का नारकी जीव कर्मभूमिज संज्ञी पर्याप्तक गर्भज तिर्यंच ही होते
हैं, मनुष्य नहीं होते।
तीसरे नरक तक के नारकी निकलकर तीर्थंकर हो सकते हैं। 4. चौथे तक के नारकी मनुष्य होकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं, ये तीर्थंकर
नहीं हो सकते।
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