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टंकोत्कीर्ण दीवार की भाँति सीधा है, पर बाहरी भाग ऊपर शिखर से नीचे धरातल की ओर क्रमशः ढालू है-नीचा होता गया है। इस पर्वत में चौदह गुफाएँ हैं, जिनसे पूर्वी-पश्चिमी पुष्करार्ध की गंगा-सिन्धु आदि नदियाँ निकलती हैं। त्रि.सा.गा. 940 के अनुसार इस पर्वत पर 22 कूट हैं। नैऋत्य और वायव्य दिशाओं को छोड़कर शेष 4 दिशाओं और दो विदिशाओं में पंक्तिरूप से 3-3 कूट हैं--6x3=18 कूट तथा चारों पूर्वादि दिशाओं में मनुष्य-लोक की ओर 1-1 सिद्धायतन है, जिनमें जिनालय हैं। इस तरह 18+4=22 कूट पर्वत पर हैं। 18 कूटों पर व्यन्तर देव सपरिवार रहते हैं। मानुषोत्तर मनुष्यलोक की सीमा का निर्धारक है। इसके भीतर का दो समुद्र और ढाई द्वीपों वाला समस्त क्षेत्र 'ढाईद्वीप या मनुष्यलोक' कहलाता है। यह 45 लाख योजन विस्तृत है।
मानुषोतर पर्वत
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करकराट
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सागर
समादेन
अधर मेरा
नाभिगिरि
सब द्वीपों के मध्य में (1) जम्बूद्वीप है। इसे लवण-समुद्र घेरे है। लवण-समुद्र को (2) धातकी-खंड-द्वीप, धातकी-खंड को कालोदक-समुद्र, कालोदक को (3) पुष्करवर-द्वीप और पुष्करवर' को पुष्करोदक समुद्र घेरे हुए है । इसके आगे (4) वारुणीवर, (5) क्षीरवर, (6) घृतवर, (7) क्षौद्रवर, (8) नन्दीश्वर, (9) अरुणवर, (10) अरुणाभासवर, (11) कुंडलवर, (12) शंखवर, (13) रुचकवर, (14) भुजगवर, (15) कुशवर और (16) क्रौंचवर द्वीप हैं, जो अपने-अपने नामों जैसे समुद्रों से घिरे हैं।
इसके आगे असंख्यात द्वीप-समुद्रों को लाँघकर (1) मनःशिला नामक द्वीप है।
532 :: जैनधर्म परिचय
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