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पातालों के मध्यम भागस्थ जल तथा वायु की हानि-वृद्धि होती रहती है। कृष्णपक्ष में जल की हानि और शुक्ल पक्ष में जल की वृद्धि होती है। अमावस्या के दिन समतल जल की ऊँचाई ग्यारह हजार योजन रहती है तथा शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से बढ़तेबढ़ते पूर्णिमा तक सोलह हजार योजन हो जाती है, फिर कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से घटते-घटते अमावस्या को 11 हजार योजन रह जाती है। पातालों के मध्यम भागस्थ जल और वायु का चंचलपना ही शुक्ल-कृष्ण पक्षों में समुद्री-जल की वृद्धि-हानि का कारण है। पातालों के निचले भाग के पवन से प्रेरित होकर मध्यम भाग का जल
और वायु वाला भाग चलाचल होता है। फलत: पूर्णिमा को पातालों के निचले दो भागों में पूर्णत: वायु और ऊपरी एक भाग में जल रहता है। अमावस्या को पातालों के ऊपरी दो भागों में जल और निचले एक भाग में वायु रहती है।
लवणसमुद्र के आभ्यन्तर और बाह्य तटों के पास चौबीस-चौबीस कुमानुषद्वीप भी हैं, जिनमें कुभोगभूमियाँ हैं। इनमें विचित्र आकृतियों वाले तथा एक पल्य की आयु वाले मनुष्य/तिर्यंच रहते हैं। इनके सिवाय लवणसमुद्र में गोलाकार 8 सूर्यद्वीप, 16 चन्द्रद्वीप तथा गौतम मागध, बरतनु, प्रभास आदि अन्य अनेक द्वीप भी हैं, जहाँ देवों के आवास हैं।
सागर तलव पाताल
पूर्णिमा का जल लल
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चित्रा पथिवी
खरभागका दसरा पटल,
530 :: जैनधर्म परिचय
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