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मेघों द्वारा मर्यादापूर्वक वर्षा होती है। यहाँ कभी दुर्भिक्ष नहीं पड़ता। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सात प्रकार की ईतियाँ और महामारी आदि रोग यहाँ कभी नहीं होते। यहाँ कुदेवों, कुलिंगियों और कुमतियों का अभाव तथा केवली तीर्थंकर आदि शलाका पुरुषों का एवं ऋद्धिधारी साधुओं का सदा सद्भाव बना रहता है।"
नील-पर्वत- महाविदेह के उत्तर में चार सौ योजन ऊँचा निषध-जैसा विस्तृत वैद्यमणिमय नील पर्वत है। इसके ऊपर मध्य में केसरी सरोवर है, जिसके दक्षिणी द्वार से सीता और उत्तरी द्वार से नरकान्ता नदियाँ निकलती हैं, इस पर 9 कूट हैं।" पूर्व के सिद्धायतन कूट पर जिनालय है। शेष पर देव रहते हैं।
__रम्यक-क्षेत्र- नीलपर्वत के उत्तर में और रुक्मी पर्वत के दक्षिण में हरिक्षेत्र के समान विस्तृत 'रम्यक क्षेत्र' है। इसमें नारी और नरकान्ता नदियाँ पद्मवान् नाभिगिरि को घेरती हुई बहती हैं। इस क्षेत्र में शाश्वत मध्यम भोगभूमि है। अतः यहाँ सुषमाकाल-जैसी व्यवस्था सदा रहती है।
रुक्मिपर्वत- रम्यक और हैरण्यवत क्षेत्रों का विभाजक 200 योजन ऊँचा रजतमय रुक्मी पर्वत है। इस पर महापुंडरीक सरोवर है, जिसके दक्षिणी द्वार से नारी तथा उत्तरी द्वार से रूप्यकूला नदियाँ निकलती हैं। इस पर 9 कूट हैं। पूर्व के सिद्धायतन कूट पर जिनमन्दिर है।
हैरण्यवत-क्षेत्र- रुक्मि और शिखरी पर्वतों के बीच स्थित इस क्षेत्र में सुवर्णकूला और रूप्यकूला नदियाँ गन्धवान् नाभिगिरि को घेरती हुई बहती हैं। यह हैमवतक्षेत्र जितना विस्तृत है। यहाँ शाश्वत जघन्य भोगभूमि की व्यवस्था है।
शिखरी पर्वत-हैरण्यवत और ऐरावत क्षेत्रों का विभाजक 100 योजन ऊँचा हेममय शिखरी पर्वत है। इस पर स्थित पुंडरीक सरोवर के दक्षिणी द्वार से सुवर्णकूला, पूर्वी-पश्चिमी द्वारों से क्रमशः रक्ता-रक्तोदा नदियाँ निकलती हैं। इस पर 11 कूट हैं। पूर्वी कूट पर जिनालय है।3।।
ऐरावत-क्षेत्र का विवरण भरत-क्षेत्र-जैसा है। इसमें रक्ता, रक्तोदा नदियाँ है।
लवण-समुद्र-जम्बूद्वीप को चूड़ी के आकार में वलयाकाररूप से घेरे हुए दो लाख योजन विस्तृत 'लवण-समुद्र' है। इसके जल की सतह का आकार सीधी रखी नाव पर औंधी रखी नाव के आकार-जैसा है। इसका भूव्यास चित्रापृथ्वी की प्रणिधि में (नीचे) दो लाख योजन तथा ऊपर मुखव्यास दस हजार-योजन है। लवण-समुद्र के बहुमध्यभाग में चारों ओर दिग्गत चार उत्कृष्ट, विदिग्गत चार मध्यम तथा अन्तर दिग्गत एक हजार जघन्य पाताल (गड्डे-विवर) हैं। कुल एक हजार आठ पाताल हैं। ये-सब रांजन-घड़े के आकार-जैसे हैं। इन पातालों के निचले एक तिहाई (1/ 3) भाग में वायु, उपरिम 1/3 भाग में जल तथा मध्य के 1/3 भाग में जल और वायु दोनों पाये जाते हैं।
भूगोल :: 529
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