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भी कहते हैं। इसमें मनुष्य - तिर्यंचों के आवास हैं तथा व्यन्तरों के आवास और ज्योतिष्क देवों के विमान भी हैं ।
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दाइ
ढाई द्वीप/मनुष्य-क्षेत्र/नर - लोक - जम्बूद्वीप, लवण समुद्र, धातकीखंड, कालोदक और आधा पुष्करवरद्वीप के रूप में यह ढाई द्वीप ही नरलोक / मनुष्यक्षेत्र कहलाता है, क्योंकि इतने ही क्षेत्र में मनुष्य पाये जाते हैं। पुष्करवर द्वीप के बीचों-बीच वलयाकार मानुषोत्तर पर्वत फैला है, जिससे यह द्वीप दो भागों में विभक्त हो गया है। मनुष्य इस पर्वत को पार नहीं कर सकते। इसी से यह पर्वत मानुषोत्तर कहा जाता है । जम्बूद्वीप से मानुषोत्तर तक विस्तृत ढाईद्वीप ही नर- लोक है। यह 45 लाख योजन विस्तृत है तथा चित्रा पृथ्वी के ऊपर त्रसनाली के बहुमध्य भाग में अतिगोलरूप से स्थित है | 24
जम्बूद्वीप – असंख्यात द्वीप - समुद्रों के बीच मनुष्य - लोक के बहुमध्य भाग में एक लाख योजन विस्तृत, थाली - जैसा गोलाकार 'जम्बूद्वीप' है। इसके उत्तरकुरुक्षेत्र में अनादि-अनिधन, पृथ्वीकायिक अकृत्रिम, परिवार वृक्षों से युक्त 'जम्बूवृक्ष' है । इससे यह द्वीप 'जम्बूद्वीप' कहलाता है । सभी द्वीपों में यह विशेष विख्यात है । इसके बीचोंबीच सुमेरु पर्वत स्थित है ।
इस द्वीप में भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक्, हैरण्यवत और ऐरावत नाम के सात क्षेत्र (वर्ष) हैं । इनको विभक्त करने वाले पूर्व-पश्चिम दिशा में समुद्र तक लम्बे, अनादिकालिक, अनिमित्तक नामों वाले हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि, और शिखरी नाम के छह कुलाचल (पर्वत) हैं। 7 ये क्रमशः 100, 200, 400, 400, 200, 100 योजन ऊँचे हैं। इन पर क्रमशः पद्म, महापद्म, तिगिंछ, केशरी, महापुंडरीक
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