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दो-सौ योजन ऊँचा महाहिमवान् पर्वत है। इस पर आठ कूट हैं। पूर्व का कूट सिद्धायतन है। शेष पर व्यन्तर देव-देवियों के निवास हैं। इस पर्वत के मध्य में स्थित महापद्म सरोवर के दक्षिणी द्वार से रोहित नदी निकलकर हैमवत क्षेत्र में तथा उत्तरी द्वार से हरिकान्ता नदी निकल कर हरिक्षेत्र में बहती है।
हरिक्षेत्र- महाहिमवान् और निषध पर्वतों के बीच हैमवत क्षेत्र से चौगुने विस्तार वाला हरिक्षेत्र है। इसके मध्य में विजयवान् नामक नाभिगिरि है। हरित और हरिकान्ता नदियाँ इसकी परिक्रमा करती हुई इस क्षेत्र में बहती हैं। हरित पूर्व-समुद्र में तथा हरिकान्ता पश्चिम-समुद्र में गिरती हैं। यह क्षेत्र शाश्वत मध्यम भोग भूमि है। अतः यहाँ सुषमाकाल-जैसी-व्यवस्था सदा-काल रहती है।
निषधपर्वत– हरिक्षेत्र के उत्तर में तपाये हुए सोने-जैसा 400 योजन ऊँचा निषध पर्वत है। इसके मध्यभाग में स्थित तिगिंछ सरोवर के दक्षिणी द्वार से हरित नदी और उत्तरी द्वार से सीतोदा नदियाँ निकलती हैं। हरित हरिक्षेत्र में और सीतोदा विदेह क्षेत्र में प्रवाहित होती हैं। इस पर्वत पर सौ सौ योजन. ऊँचे 9 कूट हैं। पूर्व दिशा का पहला सिद्धायतन है। शेष आठ कूटों पर व्यन्तर देव-देवियों के भवन हैं।
विदेहक्षेत्र- जम्बूद्वीप के मध्यवर्ती क्षेत्र में निषध और नील पर्वतों के बीच हरिक्षेत्र से चौगुने तथा भरतक्षेत्र से 64 गुने विस्तार वाला 'विदेहक्षेत्र' है। इसके ठीक बीच में लोक की नाभि की तरह सर्वोच्च सुमेरु-पर्वत है। यह मध्य-लोक का मापक है। इस पर्वत के तल से ऊपर चूलिका पर्यन्त तिरछे एक राजू क्षेत्र में मध्य-लोक का विस्तार है। विदेह क्षेत्र में सीता-सीतोदा नदियाँ प्रवाहित होती हैं।
सुमेरुपर्वत- एक लाख 40 योजन ऊंचे इस पर्वत को सुदर्शन मेरु, मन्दराचल, मेरुगिरि भी कहा जाता है। यह भूतल में 10 हजार योजन तथा ऊपर एक हजार योजन चौड़ा है। गहराई (नीव) भी एक हजार योजन है। इस पर्वत के भूतल प्रदेश में भद्रशाल वन है। भूतल से 500 योजन की ऊँचाई पर पहली कटनी में नन्दन वन है। इससे 62500 योजन की ऊँचाई पर दूसरी कटनी पर सोमनस वन है तथा इसके 36000 योजन ऊपर तीसरी कटनी में पांडुक वन है। इन वनों में अनेक वृक्ष है। चारों वनों की प्रत्येक दिशा में एक-एक जिनालय है। पांडुकवन के मध्य में 40 योजन ऊँची सुमेरु पर्वत की चूलिका है। जो नीचे 12 योजन तथा ऊपर 4 योजन चौड़ी है।
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524 :: जैनधर्म परिचय
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