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1.2.3............r n! ___r!(n-r)! आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती कृत गोम्मटसार में भी भंग संज्ञा से इस विषय का सुन्दर एवं व्यावहारिक विवेचन मिलता है। श्रेणियों के सन्दर्भ में जैनाचार्यों का योगदान अद्वितीय है तिलोयपण्णत्ती, श्रीधराचार्य की त्रिंशतिका, महावीराचार्य कृत गणितसारसंग्रह, त्रिलोकसार आदि 10वीं.श.ई. के पूर्व के ग्रन्थों में एवं ठक्कुर फेरु की गणितसार-कौमुदी में श्रेणियों का व्यापक-प्रयोग उत्कृष्टता के साथ उपलब्ध है, किन्तु इन
सब में महावीराचार्य एवं आ. नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती का योगदान सर्वोच्च है। 11. आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने 14 विशिष्ट अवरोही अनुक्रमों
(Divergent Sequences) का सुन्दर विवेचन त्रिलोकसार में प्रस्तुत किया
12. बीज गणितीय समीकरणों के क्षेत्र में भी जैनाचार्यों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया
है। प्राचीन जैन ग्रन्थों स्थानांगसूत्र आदि में समीकरणों के प्रकार आदि का उल्लेख मिलता है, बीजीय राशियों से सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण सामग्री भी उपलब्ध है। भास्कराचार्य के उल्लेखानुसार श्रीधर के अनुपलब्ध ग्रन्थ बीजगणित में द्विघात समीकरण ax+bx+c को हल करने की आधुनिक रीति दी है।
चतुराहतवर्गसमैरूपैः पक्षद्वयं गुणयेत्
अव्यक्तवर्गरूपैर्युक्तो पक्षो ततो मूलम् ।' यदि समीकरण axi+bx=c है, तो 4a(axi+bx)+b=4ac+bi (2ax+b)=4ac+b v_-b+vb' +4ac
2a महावीराचार्य ने तो एक घात, द्विघात, त्रिघात एवं बहुघात वाली एक अज्ञात राशि एवं अनेक अज्ञात राशि के समीकरणों तथा युगपत्-समीकरणों को हल
करने की विधियाँ रोचक उदाहरणों सहित दी हैं। 13. ज्यामिति में बीजगणित का अनुप्रयोग जैनाचार्यों का वैशिष्ट्य है। स्वेच्छापूर्वक 506 :: जैनधर्म परिचय
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