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में ये तीनों क्रमशः 7, 5, 4 योजन मोटे हैं। मध्यलोक की बाजुओं में ये क्रमशः 5, 4, 3 योजन ही मोटे हैं। मध्यलोक के ऊपर पाँचवें ब्रह्मलोक तक ये क्रमश: 7, 5, 4 योजन मोटे हैं। इसके ऊपर लोकान्त तक ये क्रमशः 5, 4, 3 योजन मोटे रह जाते हैं। लोक-शिखर पर इनकी मोटाई क्रमश: 2 कोश, 1 कोश और कुछ-कम एक कोश (1575 धनुषमात्र) ही शेष रह जाती है।
तीन लोक रचना
तीन लोक
डाकेर..कारकोशा
ऊर्ध्व लोक
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जाम करनय भागमा सहायगान
तिलोय पण्णत्तीप्रथमखण्ड के शुरू में
जैनेन्द्र सिवा कोश
अधोलोक वेत्रासन या आधे मृदंग के समान आकार वाला तथा सात राजू ऊँचा लोक का निचला भाग अधोलोक है। यह नीचे सात राजू और ऊपर मात्र 1 राजू चौड़ा है। इसमें ऊपर से नीचे 6 राजू तक सात नरक भूमियाँ हैं और अन्त के एक राजू क्षेत्र में केवल निगोदिया जीव हैं। यह क्षेत्र 'कल-कल पृथ्वी' कहलाता है। सातों नरक और निगोद अधोलोक। पाताललोक में गर्भित हैं। अधोलोक का घनफल 196 घनराजू है।
अधोलोक में ऊपर से नीचे 6 राजुओं में रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा,
514 :: जैनधर्म परिचय
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