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भूगोल
प्राचार्य अभयकुमार जैन
वर्षेषु वर्षान्तरपर्वतेषु, नन्दीश्वरे यानि च मन्दरेषु।
यावन्ति चैत्यायतनानि लोके, सर्वाणि वन्दे जिनपुंगवानाम् ॥ "जैन भूगोल एक स्वगृह का बोध कराने वाला शास्त्र है, एक जीवनदर्शन है, ठोस सत्य है, कल्पना-मात्र नहीं है।" "लोक परिज्ञान से हमारी अर्न्तदृष्टि खुलती है। हमारे ज्ञान-दर्पण में सबकुछ साफ-साफ झलकने लगता है। हमारे भटकन के क्षेत्र क्या हैं और उनका स्वरूप क्या है? हमारी लोकयात्रा का भूत-भविष्य-वर्तमान पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है। हमें एक जीवन-दर्शन मिलता है, जो हमें आत्मा की
ओर ले जाता है। यह हमें हमारे भटकन के क्षेत्रों का बोध कराके अनन्तानन्त की जानकारी देता है।" "अतः हम जैन भूगोल को जानें और लोकस्वरूप को समझें।... जैनाचार्यों ने लोक का इतना विस्तृत वर्णन शास्त्रों/ग्रन्थों में इसीलिए किया है कि हम उस संचरण मंच को अच्छी तरह जान-समझ लें, जिस पर हम अज्ञानी बने अनादि काल से अभिनय करते आ रहे हैं।" "ऊर्ध्वलोक, अधोलोक, स्वर्ग-नरक, द्वीप-समुद्र, सूर्य-चन्द्र, ग्रह-नक्षत्र आदि जैन भूगोल-खगोल के विवरण हमारे प्रत्यक्ष नहीं हैं, परोक्ष हैं। हमारे इन्द्रिय ज्ञान से नहीं जाने जा सकते। ये पदार्थ दूरार्थ/दूरवर्ती तथा अत्यन्त प्राचीन हैं। सभी केवलीगम्य हैं और केवली/सर्वज्ञ प्रज्ञप्त भी हैं। अत: ये हमारी आस्था, श्रद्धा तथा विश्वास के विषय हैं। जैन भूगोल धर्मध्यान का भी विषय है। ध्यानस्थ श्रमण संस्थानविचय धर्मध्यान में लोक के स्वरूप,
विस्तार आदि का चिन्तवन किया करते हैं।" जैन भूगोल का प्रतिपाद्य- जैन भूगोल करणानुयोग का विषय है। इसमें लोक
510 :: जैनधर्म परिचय
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