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सही दर्शन (सम्यग्दर्शन) एवं सही ज्ञान (सम्यग्ज्ञान) के पालन के माध्यम से आत्मसंयम द्वारा सम्भव है। गहन आत्मसंयम द्वारा मौजूदा कर्मों को भी जलाया जा सकता, इस छठे सत्य को 'निर्जरा' शब्द द्वारा व्यक्त किया गया है । अन्तिम सत्य है कि जब जीव कर्मों के बन्धन से मुक्त हो जाता है, तो मोक्ष या निर्वाण को प्राप्त हो जाता है, जो जैन दार्शनिक एवं विज्ञान- केन्द्रित चिन्तन का अभिप्रेत है ।
गणितीय अवधारणाएँ
जैन गणितज्ञ महावीराचार्य ने गणित के महत्त्व पर और जोर देते हुए कहा; इस चलाचल जगत् में जो भी वस्तु विद्यमान है, वह बिना गणित के आधार के नहीं समझी जा सकती।
"बहुभिर्विप्रलापैः किं, त्रैलोक्ये सचराचरे ।
यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वं, गणितेन बिना न हि ।। "
( बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है ? ...इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता ) ।
जैनदर्शन में भी आकाश और समय असीम माने गये। इससे बहुत बड़ी संख्याओं और अपरिमित संख्याओं की परिभाषाओं में गहरी रुचि पैदा हुई । रिकरसिव / वापिस आ जाने वाला / सूत्रों के जरिये असीम संख्याएँ बनाई गयीं । अणुयोगद्वार सूत्र में ऐसा ही किया गया। महावीराचार्य ने 'गणित - सार - संग्रह' जैसे युगान्तरकारी गणितीय ग्रन्थ की रचना की है, जिसमें उन्होंने लघुत्तम समापवर्त्य निकालने के प्रचलित तरीके का वर्णन किया है। उन्होंने दीर्घवृत्त के अन्दर निर्मित चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने का सूत्र भी निकाला है। इस विषय पर ब्रह्मगुप्त ने भी काम किया था । इनडिटर्मिनेट समीकरणों का हल निकालने की समस्या पर भी 9वीं सदी में इन जैनाचार्यों में काफी रुचि दिखलायी। कई गणितज्ञों ने विभिन्न प्रकार के इन्डिटर्मिनेट समीकरणों का हल निकालने और निकटतम मान निकालने के बारे में सकारात्मक योगदान किया ।
महावीराचार्य नौवीं शती के भारत के प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् और गणितज्ञ थे । उन्होंने क्रम-चय-संचय (कम्बिनेटोरिक्स) पर बहुत उल्लेखनीय कार्य किये तथा विश्व में सबसे पहले क्रमचयों एवं संचयों (कंबिनेशन्स) की संख्या निकालने का सामान्यीकृत सूत्र प्रस्तुत किया। वे अमोघवर्ष प्रथम नामक महान राष्ट्रकूट राजा के आश्रय में रहे । उन्होंने ‘गणितसारसंग्रह' नामक गणित ग्रन्थ की रचना की, जिसमें बीजगणित एवं ज्यामिति के बहुत से विषयों की चर्चा है । उनके इस ग्रन्थ का पवुलुरि मल्लन् ने तेलुगु में 'सार-संग्रह-गणितम्' नाम से अनुवाद किया। उन्होंने क्रमचय एवं संचय की संख्या के सामान्य सूत्र प्रस्तुत किये। इसके अतिरिक्त उन्होंने डिग्रीवाले समीकरणों हल प्रस्तुत
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484 :: जैनधर्म परिचय
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