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के संवेदनशील दृष्टिकोणों एवं गहरे वस्तुनिष्ठ ज्ञान को आख्यायित करता है। स्पर्श, घ्राण, रसना, चक्षु आदि ऐन्द्रिक चैतन्यशीलता के आधार पर जैविक वर्गीकरण को आधुनिक वर्गीकरण पद्धतियों के काफी समीप महसूस किया जा सकता है। जीवों के गुणों की व्याख्या के क्रम में उनकी वय का तथ्यपरक विश्लेषण, चेतनशीलता और प्रजननशीलता का विस्तृत प्रस्तुतीकरण आधुनिक-जीव-वैज्ञानिकों को विस्मित करता
प्रकृति-चिन्तन : पर्यावरण संरक्षण
आत्मिक उत्कर्ष की साधना के अभिक्रम में व्रतीय उपक्रम पर्यावरण संरक्षण के भी प्रेरक निमित रूपों में आख्यायित हुए हैं। व्रत और नियमों की एक वैज्ञानिक साधना अहिंसक-पथ पर मोक्षमार्गीय साधना के जरिये कर्मों की निर्जरा के क्रम में, प्रत्येक उपक्रम, प्रत्येक आचरण, प्रत्येक प्रवृत्ति- चलने में, उठने-बैठने में, वर्ण्य-पदार्थों के विसर्जन में, जलाशयों में स्नान करने, वस्त्र-प्रक्षालन में, आजीविका के चयन में हिंसापरिपोषित वाणिज्य-उन्मुख गतिवधियों को स्फूर्त करने में, जीवों को प्रताड़ित करने, बन्धक बनाने या उन्हें कष्ट देकर आर्थिक उपार्जन करने में, या फिर जीवों के घात से जुड़े व्यवसायों से पूर्ण विरति जहाँ आत्मोत्थान के उपक्रमों को संबलित करती है,वहीं प्राकृतिक संरक्षण, धारणीय विकास एवं पारिस्थितिक सन्तुलन को सहजता के साथ सफलतापूर्वक सुनिश्चित भी करती है, पूर्ण सकारात्मकता के साथ। __जैनधर्म ने सर्वाधिक पौधों को अपनाए जाने का सन्देश भी दिया है। सभी 24 तीर्थंकरों के अलग-अलग 24 पौधे हैं। बुद्ध और महावीर सहित अनेक महापुरुषों ने इन वृक्षों के नीचे बैठकर ही निर्वाण या मोक्ष को पाया। जैनधर्म में चैत्यवृक्षों या वनस्थली की परम्परा रही है। चेतना-जागरण में पीपल, अशोक, बरगद आदि वृक्षों का विशेष रेखांकन किया गया है। ये वृक्ष भरपूर ऑक्सीजन देकर व्यक्ति की चेतना को जाग्रत बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए इस तरह के सभी वृक्षों के आस-पास चबूतरा बनाकर उन्हें सुरक्षित कर दिया जाता था, ताकि वहाँ व्यक्ति बैठकर ही शान्ति का अनुभव कर सकता है। सम्यक्त्व-समन्वित चिन्तन : जैनधर्म की वैज्ञानिक दृष्टि-मुक्ति पथ पर आरोहण
विज्ञान एक सतत अभिक्रिया है और धर्म की चेतना में भी है अभिव्याप्त एक चिरन्तन तत्त्व और एक निर्मल तथा शुचितापूर्ण प्रवाह जो ज्ञान की, दर्शन की और आचरण के भी सम्यक्त्व की पवित्र सत्ता को रेखांकित करता है। विशुद्ध ज्ञान वस्तुनिष्ठ
धर्म और विज्ञान :: 493
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