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समीप जाकर अपने शरीरादि को दिखाकर अपने अभीप्सित कार्य के लिए संकेत करता है, वह रूपानुपात नाम का अतिचार है।
5. पुद्गलक्षेप- लोभवश सीमा के बाहर न जाकर सीमा के पास खड़े होकर पत्थर आदि फेंककर इशारा करना पुदगलक्षेप है।"
(ग) अनर्थदंडविरमणव्रत- जिससे उपभोग-परिभोग होता है, वह श्रावक के लिए अर्थ है और उससे भिन्न जिससे उपभोग-परिभोग नहीं होता है, वह अनर्थ है। उस अनर्थदंड से विरत होना ही अनर्थदंड-विरति है। __ रत्नकरण्डश्रावकाचार के अनुसार-मन, वचन, काय की अशुभ प्रवृत्ति का नाम दंड है। प्रयोजन-रहित मन, वचन, काय की व्यर्थ-प्रवृत्ति को अनर्थदंड कहते हैं। प्रयोजनरहित पाप के कारण रूप कार्यों को सीमा के अन्दर भी नहीं करना अनर्थदंडविरमणव्रत कहलाता है। अनर्थदंडविरमणव्रत के पाँच भेद हैं- पापोपदेश, हिंसादान, दुःश्रुति, अपध्यान और प्रमादचर्या । ___ 1. पापोपदेश- बिना प्रयोजन खोटे व्यापार अदि पाप क्रियाओं का उपदेश करना पापोपदेश कहलाता है। अनर्थदंडविरति वाले श्रावक को ऐसा उपदेश नहीं देना चाहिए।
2. हिंसादान– अस्त्र-शस्त्रादि हिंसक उपकरणों का आदान-प्रदान करना हिंसादान है।
3. दुःश्रुति- चित्त को कलुषित करने वाला हिंसा, रागादि-प्रेरक अश्लील साहित्य पढ़ना, सुनना तथा अश्लील गीत, नाटक, टेलीफोन एवं सिनेमा आदि देखना दुःश्रुति है। ___4. अपध्यान- कोई हार जाए, कोई जीत जाए, अमुक का मरण हो जाए, अमुक को लाभ हो जाए, अमुक को हानि हो जाए, बिना प्रयोजन इस प्रकार के चिन्तन को अपध्यान कहते हैं। इन क्रियाओं में व्यर्थ ही समय नष्ट होता है तथा पाप का संग्रह होता है। अतः व्रती इसका भी त्याग कर देता है। ___5. प्रमादचर्या- बिना मतलब पृथ्वी खोदना, पानी बहाना, बिजली जलाना, पंखा चलाना, आग जलाना तथा वनस्पति काटना, तोड़ना आदि प्रयोजन-रहित और प्रदूषण फैलाने वाली क्रियाओं को प्रमादचर्या कहते हैं।
__ अनर्थदंड के पाँच अतिचार- प्रस्तुत व्रत के पाँच अतिचार हैं, जिनका परिहार करना व्रत के विकास के लिए आवश्यक है। वे इस प्रकार हैं- कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, असमीक्ष्याधिकरण और उपभोगपरिभोगानर्थक्य 2
1. कन्दर्प- चारित्रमोह के उदय से उत्पादित राग के उद्रेक से हास्य-युक्त अशिष्ट वचनों का प्रयोग करना कन्दर्प कहा जाता है। ___2. कौत्कुच्य- हास्य, शोर, भंड-वचन सहित भौंहें, नेत्र, ओष्ठ, हाथ-पैर, नाक, मुख आदि की कुत्सित चेष्टा करना, यानी विकारों को धारण करना कौत्कुच्य नामक अतिचार है।
326 :: जैनधर्म परिचय
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