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अहंकारादि एवं असंयमादि दोषों से निर्वत्त हो स्वरूप-सन्मुख हो जाते हैं।
3. पुण्य-पाप स्वर्ण-लोहमय बेड़ियाँ हैं-आचार्य कुन्दकुन्द शुभ और अशुभ दोनों कर्मों को कुशील कहते हैं। अशुभकर्म को कुशील और शुभकर्म को सुशील मानने वाले अज्ञानीजनों से वे पूछते हैं कि जो कर्म हमें संसाररूप बन्दीगृह में बन्दी बनाता है, वह पुण्यकर्म सुशील कैसे हो सकता है?
जैसे पुरुष को सोने की बेड़ी भी बाँधती है और लोहे की बेड़ी भी बाँधती है, उसी प्रकार शुभ व अशुभ कर्म भी जीवों को समान रूप से सांसारिक बन्धन में बाँधते हैं।
"रागी जीव कर्म से बँधता है और वैराग्य को प्राप्त जीव कर्मबन्धन से छूटता है, अतः शुभाशुभ कर्मों में प्रीति करना ठीक नहीं है।''
वस्तुतः यहाँ आचार्य कुन्दकुन्द की दृष्टि शुद्धोपयोग पर ही केन्द्रित है, वे शुभाशुभ दोनों ही भावों को एक-जैसा संसार का कारण होने से हेय मानते हैं।"
पं. बनारसीदास ने तो इस अधिकार का नाम ही पुण्यपाप-एकत्वद्वार रखा है। पापबन्ध व पुण्यबन्ध-दोनों ही मुक्तिमार्ग में बाधक हैं, दोनों के कटु और मधुर स्वाद पुद्गल के हैं, संक्लेश व विशुद्धभाव दोनों विभाव हैं, कुगति व सुगति दोनों संसारमय हैं। इस प्रकार दोनों के कारण, रस, स्वभाव और फल-सभी समान हैं। फिर न जाने क्यों, अज्ञानी को इनमें अन्तर दिखायी देता है?... जबकि दोनों ही अंधकूप हैं व कर्मबन्ध-रूप हैं, अत: दोनों का ही मोक्षमार्ग में निषेध है। समयसार के हिन्दी-टीकाकार पण्डित जयचन्दजी छाबड़ा कहते हैं कि
"पुण्य-पाप दोऊ करम, बन्ध रूप दुर् मानि।
शुद्ध आतमा जिन लह्यो, नमूं चरण हित जानि।।" पुण्य व पाप दोनों ही कर्म-बन्ध-रूप हैं, अतः दोनों ही दुःखद हैं।" - ऐसा जानें।
इस प्रकार मोक्षमार्ग में पुण्य-पाप का क्या स्थान है, यह बात अत्यन्त स्पष्ट हो गयी है, फिर भी पाप-कार्यों से बचने के लिए पुण्य की भी अपनी उपयोगिता हैइस बात को दृष्टि से ओझल न करते हुए यथायोग्य पुण्याचरण करते हुए पुण्य के प्रलोभन से बचें और पुण्य को ही धर्म न समझ लिया जाये-इस बात से भी सावधान रहें।
4. संवर-अधिकार में कहा है कि-संवर-तत्त्व भेद विज्ञान की भावना का ही सुफल है। इसमें कहा गया है कि ज्ञानोपयोग चैतन्य का परिणाम होने से ज्ञानस्वरूप है और क्रोधादि भावकर्म, ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म व शरीरादि नोकर्म-सभी पुदगल के परिणाम होने से जड़ हैं। अतः उपयोग व क्रोधादि में प्रदेश-भिन्नता होने से अत्यन्तभेद है।
अध्यात्म :: 407
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