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अर्थ-क्षमा मनुष्यों को माता के समान हितकारी है, माता क्रोध को प्राप्त हो सकती है, किन्तु क्षमा कभी भी क्रोध को प्राप्त नहीं होती।
क्षमया क्षीयते कर्म दुःखदं पूर्वसंचितम्।
चित्तं च जायते शुद्ध, विद्वेषभयवर्जितम् ।। 5 ।। अर्थ-क्षमा से दुःखदायी पूर्व संचित कर्म नष्ट हो जाते हैं, तथा विद्वेष और भय से रहित चित्त निर्मल हो जाता है।
पुष्पकोटि समं स्तोत्रं, स्तोत्रकोटिसमो जपः।
जपकोटिसमं ध्यानं, ध्यानकोटिसमा क्षमा।।6।। अर्थ-आराध्य के चरणों में करोड़ों पुष्पों को चढ़ाने से जितना पुण्य मिलता है उतना पुण्य एक स्तोत्र के पाठ करने से प्राप्त हो जाता है, करोड़ों पाठ करने से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना पुण्य एक जाप करने से प्राप्त हो जाता है, करोड़ों जाप करने से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना पुण्य ध्यान करने से प्राप्त हो जाता है तथा करोड़ों बार ध्यान करने से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना पुण्य किसी अपराधी प्राणी को एक बार क्षमा करने से प्राप्त हो जाता है।
कस्यचित् सम्बलं विद्या, कस्यचित् सम्बलं धनम्।
कस्यचित् सम्बलं मालू, मुनीनां सम्बलं क्षमा।।7।। अर्थ-किसी का सम्बल विद्या है, किसी का सम्बल धन है, किसी का सम्बल मरण है और मुनियों का सम्बल क्षमा है।
नरस्याभरणं रूपं, रूपस्याभरणं गुणः। गुणस्याभरणं ज्ञानं, ज्ञानस्याभरणं क्षमा।।8।।
अर्थ-मनुष्य का आभूषण (अलंकार) रूप है, रूप का आभूषण गुण है, गुण का आभूषण ज्ञान है, ज्ञान का आभूषण (अलंकार) क्षमा है।
टिप्पण-शरीर की सुन्दरता में वृद्धि करने वाले पदार्थ को अलंकार या आभूषण कहते हैं।
क्रोधे नाशयते धर्म, विभावसुरिवेन्धनम् ।
पापं च कुरुते घोरमिति मत्वा विसह्यत।। 22 ।। अर्थ-क्रोध धर्म को नष्ट कर देता है, जैसे अग्नि ईंधन को नष्ट कर देती है वैसे क्रोध भयंकर पापों को भी करता है, ऐसा मानकर क्रोध को छोड़ देना चाहिए। 412 :: जैनधर्म परिचय
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