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4. प्रतिष्ठा पाठ-आचार्य जयसेन के अनुसार बिम्ब 9 ताल (108 अंगुल)
होना चाहिए। प्रतिष्ठा ग्रन्थानुसार जिनबिम्ब सुन्दर अंगोपांग, कान्ति व लावण्य-सहित, वृद्ध व बाल अवस्था से रहित, प्रसन्न, सौम्य, शान्त स्वरूप, श्रीवत्स लक्षण सहित, नख-केश सहित, समचतुरस्र संस्थान से युक्त, वैराग्य और तप की दिगम्बर-मुद्रा-सहित, पद्मासन एवं कायोत्सर्ग-मुद्रा-सहित अन्य नाना प्रकार के आसनों से रहित, अष्टप्रातिहार्ययुक्त, नासाग्र स्थित अविकारी दृष्टि, शुभ लक्षण सहित एवं रौद्रादि बारह दोषों से रहित, दाग एवं प्रतिकूल रेखाओं रहित होता है। अर्हन्त एवं सिद्ध बिम्ब में अन्तर
अर्हन्त बिम्ब सुन्दर अंगोपांग सहित, दिगम्बर स्वरूप वाला अष्टप्रातिहार्य एवं चिह्न सहित होता है। सिद्ध बिम्ब अष्ट प्रातिहार्य एवं चिह्न रहित होता है। दोनों ही बिम्ब रूप होते हैं, तभी उनके ऊपर संस्कारारोपण एवं मन्त्रन्यास की क्रिया किया जाना सम्भव होता है। __ समांगुल-प्रतिमा प्रतिष्ठा योग्य नहीं होती है, विषम माप की प्रतिमा श्रेष्ठ होती है और वह प्रतिष्ठा के योग्य होती है। हीनांगी जिनबिम्ब का फल
जिनबिम्ब के अंगोपांग उपर्युक्त माप के अनुसार होने चाहिए। बेडौल, भिन्नमाप, हीनांग या अधिकांग का प्रभाव प्रतिष्ठाकारक पर पड़ता है। अतः प्रतिष्ठाकारक को जिनबिम्ब का माप अनुभवी प्रतिष्ठाचार्य से कराकर ही प्रतिष्ठा कराना चाहिए। मूलनायक प्रतिमा का सूक्ष्म परीक्षण अनिवार्य है।
हीनांगप्रतिमा का फल निम्नानुसार हैवक्रनासिका-दुःखकारक विकृत नेत्र-नेत्र-विनाशक हीन कटि-आचार्य-विनाशक हीन आसन-ऋद्धि-अवनाशक ऊर्ध्वमुख-धन-नाशकारक वक्र ग्रीवा-स्वदेश-विनाशक विषम आसन-व्याधिकारक न्यूनाधिक अंग-स्व-पर-पक्ष को कष्ट अधिक अंग-शिल्पकार का नाश पतला उदर-दुर्भिक्षकारक
प्रतिष्ठा विधि एवं साहित्य :: 339
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