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तरह एक आत्मा है। सभी आत्माएँ सनातन, स्वतन्त्र और वैयक्तिक हैं। प्रत्येक आत्मा अथाह ज्ञान, बोध और चेतन स्वरूप है। प्रत्येक आत्मा शान्ति और आनन्द में रहना चाहती है। कोई भी आत्मा कष्ट भोगना नहीं चाहती ।
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अहिंसा की परिभाषा
अहिंसा की विस्तृत एवं सर्व- समावेशी परिभाषा इस प्रकार है
"मानसिक, शाब्दिक, शारीरिक, स्पष्ट या अस्पष्ट रूप से, जाने या अनजाने में, साभिप्राय और बिना शर्त के, स्वयं से या दूसरों द्वारा किसी भी छोटे-बड़े जीव को आघात न पहुँचाना, आहत न करना, गाली न देना, शोषण न करना, अपमान न करना, भेदभाव न करना, उत्पीड़न न करना और न ही हत्या करना ही अहिंसा है । "
अहिंसा के कई सांकेतिक अर्थ हैं। जब हम कहते हैं- अहिंसा, तो साधारणतया हम सोचते हैं कि किसी को भी अपने शब्दों या कृत्यों से न मारना या आघात पहुँचाना, पर यह अहिंसा का केवल दस प्रतिशत अर्थ ही है । एक हिम नदी की तरह इसका अधिकांश अर्थ प्रच्छन्न ही रहता है ।
बीसवीं शताब्दी के समाज-सुधारक आचार्य तुलसी अहिंसा को परिभाषित करते हुए तीन शर्तें रखते हैं। प्रथम - किसी भी जीव की मानसिक, शाब्दिक या अपने कृत्यों से हत्या न करें, उसको आघात न पहुँचाएँ । द्वितीय - सभी प्राणियों के प्रति समभाव रखें । आदर, स्नेह, दया और करुणा भी इसमें सम्मिलित हैं । तृतीय - सदा सतर्क रहें ।
वास्तव में अहिंसा बिना शर्त के सभी प्राणियों के प्रति स्नेह, करुणा और आदर - भाव
है ।
अहिंसा के दो प्रकार
अहिंसा की यह परिभाषा सम्पूर्ण, सार्वभौमिक बिना शर्त के और सनातन है । इसमें कोई दोष नहीं है। मेरे मत में अनेकान्तवाद - 'कोई, एक दृष्टिकोण पूरे सत्य को उद्घाटित नहीं करता', हमें अहिंसा की कोई अन्य परिभाषा को चुनने की स्वतन्त्रता नहीं देता । अहिंसा का केवल एक ही अर्थ है। जैन धर्मानुसार अहिंसा प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है। इसे सदैव अपनी पूरी शक्ति के अनुसार व्यवहार में लाना है। यह प्रवचन या उपदेश के लिए नहीं, अपितु पालन करने के लिए है ।
अहिंसा दो प्रकार की हो सकती है
1. नकारात्मक - यह किसी को भी किसी प्रकार से हानि न पहुँचाने का सिद्धान्त है। ( यह " जियो और जीने दो" कहा जाता है) डॉ. डी. आर. मेहता इसे नकारात्मक अवधारणा मानते हैं ।
2. सकारात्मक— यह सिद्धान्त दूसरों की पीड़ा दूर करने में सहायता करना है। ("इसे
अहिंसा - एक संक्षिप्त प्रवेशिका :: 393
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