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जियो और दूसरों को जीने में सहायता करो" कहा जाता है) इस अर्थ में हम एक दर्शक की तरह हिंसा होते हुए नहीं देख सकते।
जैन धर्मग्रन्थों में बताये गए अहिंसा के 18 प्रकार -
बहुत से जैनी प्रतिक्रमण संस्कार का पालन करते हैं। कुछ इसे प्रतिदिन करते हैं, कुछ वर्ष में कुछ बार। पर्यषण और दस लक्षण के दौरान का श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों प्रतिक्रमण पालन करते हैं। प्रतिक्रमण एक सुव्यवस्थित एवं विचारात्मक प्रक्रिया है, जो व्यक्ति के जीवन पर एकाग्र की गई है (पिछले 24 घण्टों में, छ: महीनों में, वर्ष भर में या-फिर जो भी समय निर्धारित किया जाता है) और व्यक्ति इसमें ईमानदारी से स्वयं मूल्यांकन करता है कि उसने क्या, कहाँ और कब हिंसा की?
18 प्रकार के पाप इस प्रकार हैं-हिंसा, झूठ बोलना, चोरी करना, इन्द्रिय सुख, संचित करना, क्रोध, अहं, धोखा, लालच, मोह, विद्वेष, झगड़ा, झूठा लांछन लगाना, निन्दा करना, अनुराग एवं असन्तुष्टि, दूसरों के बारे में व्यर्थ बातें करना एवं गलत धारणा रखना।
प्रश्न : क्या पीड़ा का स्तर एवं तीव्रत्व सभी जीवों पर एक-जैसा होता है चाहे उनकी कितनी भी इन्द्रियाँ हों?
इसका उत्तर है-नहीं। पीड़ा का स्तर एवं तीव्रत्व सभी जीवों में एक-समान नहीं होता। यह विभिन्न जीवों के प्राणों की संख्या पर निर्भर करता है। अतः सभी जीवों का एक पदानुक्रम है।
एक अहिंसक, एक इन्द्रिय से पाँचों इन्द्रियों वाले जीवों के पदानुक्रम का आदर करता है। उसे ज्ञात है कि सभी जीव हिंसा की मात्रा का एक-समान अनुभव नहीं करते । अतः वह अपने नित्य के जीवन को उसी पदानुक्रम पर आधारित करता है। एक अहिंसक जहाँ तक सम्भव हो सके, भोजन, कपड़ों और अन्य आवश्यकताओं के लिए सभी जीवों पर क्रूरता और उनके शोषण का बहिष्कार करता है। ___ नीचे प्राणों के आधार पर एक जीव द्वारा अनुभव की गई पीड़ा का सारांश दिया गया
-एक इन्द्रिय वाले जीव के चार प्राण होते हैं :
जीवन आयु, शारीरिक शक्ति, श्वास और स्पर्श। -दो इन्द्रिय वाले जीव के छः प्राण होते हैं :
जीवन आयु, शारीरिक शक्ति, श्वास, स्पर्श, स्वाद तथा बोलने की शक्ति। - तीन इन्द्रिय वाले जीवों के सात प्राण होते हैं :
ऊपर लिखे सभी तथा घ्राण शक्ति। - चार इन्द्रियों वाले जीव के आठ प्राण होते हैं :
उपरिलिखित सभी एवं दृष्टि।
394 :: जैनधर्म परिचय
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