________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
स्थापना की जाती है।
इन्द्र-प्रतिष्ठा-प्रतिष्ठाविधि में सम्मिलित होने वाले मुख्य पात्रों एवं शेष पात्रों का सकलीकरण करके मन्त्रविधि द्वारा अधोवस्त्र (धोती), दुकूल (दुपट्टा), हार, मुकुट, माला, कण्ठाभरण, कंकण, बाजूबन्द, कुण्डल एवं करधनी का मन्त्र-संस्कार करते हैं तथा अनुष्ठान-पर्यन्त के लिए आवश्यक नियम देकर, देव-शास्त्र-गुरु की साक्षीपूर्वक संकल्प करके इन्द्र-प्रतिष्ठा की जाती है। ___मण्डप-प्रतिष्ठा-प्रतिष्ठा विधि के लिए याग-मण्डल वेदी पर रत्नचूर्ण एवं रंगोली से बनाए गये मण्डल पर एवं मण्डप में मुख्य पात्रों द्वारा मन्त्र-विधि से चतुर्निकाय देव एवं दिक्पालों का आह्वान श्रीफल एवं पुष्पों द्वारा किया जाता है। मण्डल पर दिशा एवं विदिशा में लघुपताका स्थापित करके यन्त्र, मंगल-कलश एवं मंगलदीप की स्थापना करते हैं। मण्डप को रक्षासूत्र द्वारा वेष्टित करके मण्डप-प्रतिष्ठा की जाती है। ___नान्दी-विधान-बिम्ब प्रतिष्ठा विधि में तीर्थंकर के माता-पिता का स्वर्ण सौभाग्यवती महिलाओं के द्वारा मंगल स्नान, उबटन आदि से कराकर उनका स्वस्ति-वाचन, मंगलतिलक, पट्टबन्धन, हार-मुकुट पहनाकर तीर्थंकर के वंश में गोत्र-परिवर्तन किया जाता है। इसके पश्चात् वह गृह-कार्यों से विरत होकर पंचकल्याणक की क्रियाओं में संलग्न रहेंगे। उन्हें घर में होने वाले सूतक का दोष नहीं लगेगा।
यागमंडल-विधान-जिनबिम्ब-प्रतिष्ठा, वेदी-प्रतिष्ठा, कलशारोहण एवं ध्वजारोहण की अनुष्ठान-विधि में यागमण्डल-विधान किया जाता है। आचार्य जयसेन स्वामी ने 'प्रतिष्ठापाठ' ग्रन्थ में 9 वलय का मण्डल बनाकर याग-मण्डल विधान करने का निर्देश किया है।
प्रथम वलय में-पंचपरमेष्ठी, चारों मंगल, उत्तम एवं शरण की 17 अर्यों से आराधना। द्वितीय वलय में-भूतकालीन 24 तीर्थंकरों की 24 अर्यों से आराधना। तृतीय वलय में वर्तमानकालीन 24 तीर्थंकरों की 24 अर्यों से आराधना। चतुर्थ वलय में-भविष्यत्कालीन 24 तीर्थंकरों की 24 अर्यों से आराधना। पंचम वलय में विद्यमान 20 तीर्थंकरों की 20 अर्यों से आराधना। षष्ठ वलय में-आचार्य परमेष्ठी के 36 मूलगुणों की 36 अर्यों से आराधना। सप्तम वलय में-उपाध्याय परमेष्ठी के 25 मूलगुणों की 25 अर्यों से आराधना। अष्टम वलय में-साधु परमेष्ठी के 28 मूलगुणों की 28 अर्यों से आराधना। नवम वलय में-ऋद्धिधारी मुनिराजों की 48 अर्यों से आराधना।
अन्त में जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य एवं चैत्यालयों की आराधना करके जयमालापूर्वक विधान की पूर्णता की जाती है।
344 :: जैनधर्म परिचय
For Private And Personal Use Only