________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
का सहस्राक्षदर्शन करके उस बिम्ब को ऐरावत पर बैठाकर पांडुक शिला पर ले जाकर 1008 कलशों से जन्माभिषेक करते हैं।
शृंगार- शचि-इन्द्राणि विलेपन करके परिमार्जन कर वस्त्राभरण द्वारा अलंकरण करके अंजन-संस्कार करती है। ___ स्तुति-आरती-सौधर्म इन्द्र सहस्रनामों से स्तुति करता है तथा शचि-इन्द्राणि रत्नदीपों से मंगल-आरती करती है।
अमृत-स्थापन सौधर्म इन्द्र बालक जिनबिम्ब के पाँव के अंगूठों में अमृत-स्थापन करता है, जिससे संकेत मिलता है कि तीर्थंकर बालक अँगूठा चूसकर वृद्धि करता है। वह माँ का स्तनपान नहीं करता है।
पालना-उत्सवपूर्वक तीर्थंकर बालक को सुसज्जित पालने में बिठाकर दोलन क्रिया करना।
बालक्रीड़ा-देवकुमारों के साथ विभिन्न प्रकार की शिक्षाप्रद बाल लीलाएँ करना।
तप-कल्याणक
राज्यतिलक-यौवन अवस्था होने पर सौधर्म इन्द्र के सहयोग से बिम्ब रूप आदिकुमार युवराज का नन्दा, सुनन्दा राजकुमारियों से सांकेतिक पाणिग्रहण संस्कार। असि, मसि, कृषि, शिल्प, विद्या, वाणिज्य द्वारा जीवन-यापन की शिक्षा देकर जीव-संरक्षण। सौधर्म द्वारा राज्याभिषेक एवं राजतिलक-क्रिया-सम्पादन, महामण्डलेश्वर, मण्डलेश्वर तथा मुकुटबद्ध राजाओं का नियोजन कर राजनीति एवं सामाजिक शाब्दिक दण्ड-व्यवस्था का संकेत करना।
वैराग्य-बिम्ब को नीलांजना के नृत्य करते-करते आयु पूर्ण होने के निमित्त से वैराग्य, लौकान्तिक देवों द्वारा वैराग्यवर्धन एवं पुष्पांजलि-समर्पण, सभी पुत्रों को राज्य सौंपकर परिवार को सम्बोधित करके दीक्षा पालकी में आकाशमार्ग से वन-गमन का संकेत।
दीक्षा- वटवृक्ष के नीचे चन्द्रकान्त शिला पर पूर्व दिशा में आसीन हो वस्त्राभूषण त्यागकर 'नमः सिद्धेभ्यः' कहते हुए मुनिराज द्वारा पंचमुष्ठि केशलौंच, सर्वांग पर बीजाक्षरों का स्वर्ण-शलाका द्वारा आरोपण। 48 मन्त्रों द्वारा निर्वाण अवस्था तक के संस्कार लवंग द्वारा करके पिच्छी कमण्डलु का समर्पण करके उसे वन में साधना हेतु बिम्ब स्थापन करना। चार बत्ती वाला दीपक जलाकर चौथे मन:पर्यय-ज्ञान-प्राप्ति का संकेत।
ज्ञानकल्याणक
आहार दान-तीर्थंकर भगवान बिना आहार लिये निर्वाण प्राप्त नहीं करते। आहारदाता
346 :: जैनधर्म परिचय
For Private And Personal Use Only