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न रहें। इस प्रकार के शुभ काम के करते समय अत्यन्त प्रसन्न मुद्रा में पंचमंगल पाठ' करना आवश्यक है। छन्ने से पूजा के पात्रों को साफ करना चाहिए। सबसे पहले स्थापना पात्र (ठोना) पर स्वास्तिक चिह्न चन्दन अथवा केशर से लगाना चाहिए। जल, चन्दन चढ़ाने वाले कलश पात्र पर स्वस्तिक चिह्न लगाना चाहिए। महाघ की थालिका के अतिरिक्त दूसरी थालिका (रकेबी) में स्वस्तिक चिह्न लगाना चाहिए तथा बड़े थाल में क्रमश: बीच में तीन स्वस्तिक चिह्न देव, शास्त्र, गुरु के प्रतीकार्थ लगाना चाहिए। बीच वाले स्वस्तिक चिह्न के ऊपर तीन बिन्दुओं की संरचना सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र के लिए करनी होती है।
प्रथमतः पुजारी को खड्गासन में सावधानीपूर्वक नौ बार णमोकार मन्त्र का शुद्ध उच्चारण कर दर्शन, ज्ञान और चारित्र की तीन बिन्दु-स्थलियों पर नौ-नौ पुष्पों को क्रमशः इस प्रकार चढ़ाना चाहिए कि वे एक-दूसरे से सम्मिलित न होने पावें। सस्वर विनयपाठ' का वाचन करने के बाद मध्यस्थ चिह्नित स्वस्तिक पर पुष्पों को चढ़ाना चाहिए तथा इसके पश्चात् 'ॐ ह्रीं अनादिमूलमन्त्रेभ्यो नमः' ऐसा कहकर पुष्पों का क्षेपण करना चाहिए। चन्द्राकार बने स्थापना आदि पर क्रमशः पंच कल्याणक का अर्घ, पंचपरमेष्ठि का अर्घ, सहस्रनाम का अर्घ, स्वस्तिमंगलवाचन, जिनेन्द्र स्वस्तिमंगल, दश दिक्पालों के अर्घ चढ़ाते हुए 'देव-शास्त्र-गुरु पूजा' का विधिवत पूजन करना चाहिए। यदि पुजारी-भक्त के पास समयाभाव है, तो पूर्ण पूजन करने की अपेक्षा 'बीस तीर्थंकर के अर्घ, अकृत्रिम चैत्यालयों के अर्घ, द्वितीयांक चन्द्राकार मण्डित चिह्न पर अर्घ चढ़ाते हुए नौ बार णमोकार महामन्त्र का पाठ कर पुष्पांजलि क्षेपण करना चाहिए। 'सिद्धपूजाअर्घ' तीसरे क्रम के बने चन्द्राकार पर अर्घ्य क्षेपण करना चाहिए। 'चौबीसी तीर्थंकर पूजार्थ चौथे चन्द्राकार पर अर्घ्य' चढ़ाना होता है। यदि प्रभु वेदिका पर तीर्थंकर आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान है, तो पुजारी प्रत्येक तीर्थंकर की पूजा करने का अधिकारी है। यदि वहाँ पर महावीर स्वामी की स्थापना है तो फिर पूर्व तीर्थंकरों की पूजा बाद में नहीं करनी चाहिए। इन तीर्थंकरों की स्थापना स्थापना-पात्र (ठोणा) में ही की जाती है, किन्तु विराजमान तीर्थंकर की स्थापना ठोणा में नहीं की जाती। उनकी स्थापना चन्द्राकार पाँच पर ही सम्पादित की जाती। शान्ति पाठ के पश्चात् महार्घ मोक्षस्थली स्थान से
आरम्भ कर पूरी परिक्रमा तक समाप्त कर देना चाहिए। अर्घ बार-बार नहीं लेना चाहिए। 'शान्ति करो सब जगत में वृषभादिक जिनराज' तक पाठ करने पर पुष्पों को समाप्त कर लेना चाहिए। तब जल और चन्दन को उठाकर पात्र में दोनों की धार मिलाकर तीन बार में समाप्त कर देना चाहिए और अन्त में नौ बार णमोकार मन्त्र पढ़कर विसर्जन पाठ पढ़ते हुए तीन-तीन साबित पुष्पों को तीन बार में कुल नौ पुष्प स्थापना पात्र में चढ़ाना चाहिए। तीन बार आशिका लेनी चाहिए और उन सभी पुष्पों को धूप दान में भस्म कर देना चाहिए तथा स्थापना पात्र में बने स्वस्तिक चिह्न को जल से छन्ने द्वारा
पूजा परम्परा :: 361
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