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द्वारा ताड़ित हुआ वापियों का गरम जल श्रेष्ठ होता है। घी, तैल, दूध, पानी आदि पतले पदार्थों को बिना छने कभी काम में नहीं लेना चाहिए। छना जल दो घड़ी, लवंगादि डालने पर छह घंटे एवं उवलने पर 24 घंटे तक पीने-योग्य रहता है, इसके बाद बिना छने के समान है। 36 अंगुल लम्बे, 24 अंगुल चौड़े वस्त्र को दोहरा करने पानी छानना चाहिए।
(ग) अग्नि-शुद्धि-भोजन पकाने के लिए ईंधन घुना, जीव सहित, गीला एवं छिलका लगा न हो। अग्नि जलाने से पहले ईंधन चूल्हा शोधकर जीव रहित कर लेना चाहिए।
(घ) कर्ता-शुद्धि-भोजन बनाने वाला स्वस्थ हो, स्नानादिक कर स्वच्छ कपड़े पहने हो, नाखून बड़े न हो, अंगुली आदि कट जाने पर खून का स्पर्श न हो, गर्मी में पसीना का स्पर्श न हो, या पसीना खाद्य वस्तु में न गिरे। ज्यादा बात न करता हो, दृष्टि अच्छी हो, अच्छी तरह सुनता हो, दयालु, विवेकवान, पाक-कला एवं भक्ष्याभक्ष्य का जानकार हो, क्रोधी और चटोरा न हो।
भोजन बनाने वाली बच्चे को स्तनपान कराने वाली या गर्भिणी न हो। रोगी, अत्यन्त वृद्ध, बालक, अन्धा, गूंगा, अशक्त, भय युक्त, शंका-युक्त अत्यन्त नजदीक खड़ा हुआ, दूर खड़ा हुआ, लज्जा से मुँह फेरने वाला, जूता-चप्पल पहिन कर भोजन बनाने एवं परोसने वाला नहीं होना चाहिए।
2. क्षेत्र-शुद्धि-भोजन बनाने का स्थान और आहार ग्रहण करने का स्थान शुद्ध होना अनिवार्य है। क्षेत्र-शुद्धि चार प्रकार की है।
(क) प्रकाश-शुद्धि- भोजन दिन में ही बनाना चाहिए, रात्रि में जीवों की हिंसा होती है। सूर्य के प्रकाश में जीव नहीं आते, किन्तु कृत्रिम प्रकाश में जीवों का आवागमन ज्यादा होता है। अत्यन्त अँधेरे स्थान में भोजन बनाना और ग्रहण करना हानिकारक है। रसोईघर में प्राकृतिक प्रकाश आना चाहिए।
(ख) वायु-शुद्धि– रसोईघर खुला हुआ हो, जिससे शुद्ध वायु आ-जा सके। भोजन-शाला में जहाँ प्रकाश आवश्यक है? वहीं स्वच्छ वायु का प्रवाह भी होना चाहिए। गन्दे स्थान से दुर्गन्धयुक्त वायु रसोईघर या भोजन कक्ष में नहीं आना चाहिए। उत्तर या पूर्व दिशा से प्रवाहित होकर वायु का आना श्रेष्ठ होता है। सूर्य प्रकाश से संस्कारित वायु स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है। गन्दगी, रोगी, मांसाहारी भोजनबनाने की जगह एवं कचरा जलने की ओर से वायु न आती हो।
(ग) स्थान-शुद्धि- भोजन बनाने एवं ग्रहण करने का स्थान अँधेरे में न हो, श्मशान, बूचड़खाना, मदिरालय, वेश्यालय, जानवरों के बाँधने का स्थान, मांस पकाने का स्थान, सार्वजनिक आने-जाने का मार्ग एवं दुर्गन्ध युक्त स्थान नहीं होना चाहिए।।
सोला :: 373
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