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महोत्सव रूप कैसे दे सकते हैं? ...अर्थात् नहीं दे सकते।
अत: हमें मरण सुधारने के बजाय जीवन सुधारने का प्रयत्न करना होगा।
मृत्यु को अमृत महोत्सव बनाने वाला मरणोन्मुख व्यक्ति तो जीवन-भर के तत्त्वाभ्यास के बल पर मानसिकरूप से अपने आत्मा के अजर-अमर, अनादि-अनन्त, नित्यविज्ञान-घन व अतीन्द्रिय आनन्द स्वरूप के चिन्तन-मनन द्वारा देह से देहान्तर होने की क्रिया को सहज भाव से स्वीकार करके चिर विदाई के लिए तैयार होता है। साथ ही चिर विदाई देने वाले कुटुम्ब-परिवार के विवेकी व्यक्ति भी बाहर से वैसा ही वैराग्यप्रद वातावरण बनाते हैं, तब कहीं वह मृत्यु अमृत महोत्सव बन पाती है।
कभी-कभी अज्ञानवश मोह में मूर्छित हो परिजन-पुरजन अपने प्रियजनों को मरणासन्न देखकर या मरण की सम्भावना से भी रोने लगते हैं, इससे मरणासन्न व्यक्ति के परिणामों में संक्लेश होने की सम्भावना बढ़ जाती है, अतः ऐसे वातावरण से उसे दूर ही रखना चाहिए।
संन्यास, समाधि व सल्लेखना
यद्यपि संन्यास, समाधि व सल्लेखना एक पर्याय के रूप में ही प्रसिद्ध हैं, परन्तु संन्यास समाधि की पृष्ठभूमि है, पात्रता है। संन्यास संसार, शरीर व भोगों से विरक्तता है और समाधि समताभाव रूप कषाय-रहित शान्त परिणामों का नाम है तथा सल्लेखना जैनदर्शन का पारिभाषिक शब्द है, जो दो शब्दों से मिलकर बना है सत् +लेखना =सल्लेखना। इसका अर्थ होता है-सम्यक् प्रकार से काय एवं कषायों को कृश करना। आचार्य समन्तभद्र ने 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' में कहा है कि
उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निःप्रतीकारे।
धर्मायतन् विमोचनमाहुः सल्लेखनामार्याः॥ जब उपसर्ग, दुर्भिक्ष, बुढ़ापा अथवा असाध्य रोग आदि कोई ऐसी अनिवार्य परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण धर्म की साधना सम्भव न रहे, तो आत्मा के आश्रय से कषायों को कृश करते हुए अनशनादि तपों द्वारा काय को भी कृश करके धर्मरक्षार्थ मरण को वरण करने का नाम सल्लेखना है। इसे ही मृत्यु-महोत्सव भी कहते हैं।
धर्म आराधक उपर्युक्त परिस्थिति में प्रीतिपूर्वक प्रसन्न-चित्त से बाह्य में शरीरादि संयोगों को एवं अन्तरंग में राग-द्वेष आदि कषायभावों को क्रमशः कम करते हुए परिणामों में शुद्धि की वृद्धि के साथ शरीर का परित्याग करता है। बस, यही सल्लेखना का संक्षिप्त स्वरूप है।
समाधि की व्याख्या करते हुए शास्त्रों में कहा गया है कि –'समरसी भावः समाधिः' समरसी भावों का नाम समाधि है। समाधि में त्रिगुप्ति (मन-वचन-काय को वश में करना) की प्रधानता होने से समस्त विकल्पों का नाश होना मुख्य है।
सल्लेखना :: 385
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