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जल में पखारना (धोना चाहिए। केशर तथा चन्दन को घिसकर एक पात्र में एकत्र कर लेना चाहिए। आधे अक्षत और नैवेद्य ( सूखे नारियल की टुकड़ियाँ या शकले) को केशर चन्दन में रंग लेना आवश्यक है । यदि केशर का अभाव हो तो हरसिंगार के पुष्प - पराग को चन्दन के साथ घिसकर तैयार करना चाहिए। अष्टकर्मों को क्षय करने के लिए जिन पूजन में अष्टद्रव्यों का ही विधान है। इन सभी द्रव्यों को एक बड़े थाल में क्रमशः व्यवस्थित करना चाहिए - यथा - (1) जल - स्वच्छ जल को जल पात्र में भर लेना चाहिए, (2) चन्दन - स्वच्छ जल में चन्दन केशर मिलाकर एक पात्र में भर लेना है, (3) अक्षत - श्वेत पखारे हुए पूर्ण चावलों को थाल में रखना चाहिए, (4) पुष्प - श्वेत पखारे हुए चावलों को चन्दन केशर में रंग कर, रखना होता है । (5) नैवेद्य - गिरी की चिटें अथवा टुकड़ियों को पखार कर रखना चाहिए। (6) दीपगिरी की चिटें अथवा टुकड़ियों को केशर चन्दन में रंगकर अथवा यदि सम्भव हो तो घृत और कपूर का जला हुआ दीप रखा जाता है, (7) धूप - चन्दन चूरा तथा धूप चूरा, कभी-कभी यदि चन्दन चूरा पर्याप्त न हो तो अक्षत में उसे ही मिलाकर व्यवस्थित कर लिया जाता है, (8) फल - बादाम, लौंग, बड़ी इलायची, काली मिर्च, कमलघटक आदि शुष्क फलों का प्रक्षालन कर थाल में रखना चाहिए। थाल के बीच में उक्त अष्ट द्रव्यों का मिश्रण अर्ध का रूप ग्रहण करता है ।
पूजन में काम आने वाले पात्रों के प्रकार और संख्या इस प्रकार से आवश्यक होती है- - थाल नग 2, तश्तरी नग 2, कलश नग 2 (छोटे आकार के जल, चन्दन के लिए), चम्मच नग 2, स्थापनापात्र - ठोना नग 1, जल चन्दन चढ़ाने का पात्र - नग 1, धूपदान नग 1, छन्ना नग पाँच (एक छन्ना सामगी को ढकने के लिए, तीन छन्ने प्रभु - प्रतिमा प्रक्षालन के लिए तथा एक छन्ना वेदिका को धोकर पोंछने के लिए), काष्ठ की चौकियाँ नग 2, थाल आदि रखने के आकार की सामान्य चौकियाँ । वेदी, जहाँ प्रभु - प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं, में पूजक को प्रवेश करते समय तीन बार - 1 - नि:सही, निःसही, नि: सही का उच्चारण करना चाहिए। इस उच्चारण में मूल बात यह है कि यदि प्रभु -वेदिका में किसी भी योनि के जीव- गण - व्यन्तर देव आदि उपासनार्थ पहले से उपस्थित हों तो उनसे व्यर्थ में टकराहट न हो जावे और वे इस त्रयोच्चारण को सुनकर स्वयं बच जावें तथा राग-द्वेष जन्य समग्र व्यवधान समाप्त हो जावे । पूजन सामग्री तथा उपकरणों को यथास्थान पर रखने के पश्चात् पूजक को प्रत्येक वेदी पर प्रभुबिम्ब के सम्मुख नतमस्तक हो णमोकार मन्त्र पढ़ना चाहिए । प्रतिमा अभिषेक (जल से नहलाना) करने से पहिले श्वेत स्वच्छ तीन छन्नों को क्रमशः एक छन्ना प्रभुचरणों में बिछा देना चाहिए। एक छन्ना से कलश ढोने से पूर्व प्रभु - प्रतिमा को शुष्क प्रक्षालन कर लेना आवश्यक है। कलश ढोकर प्रतिमा रूप - स्वरूप का प्रक्षालन करना परमावश्यक है। अन्त में दूसरे छन्ने से प्रतिमा का परिपोछन करना होता है, ताकि प्रतिमा पर किसी भी अंश में जल - कण शेष
360 :: जैनधर्म परिचय
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