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कल्याण-भावना व्रत, 37. दुःखहरण व्रत, 38. कर्मक्षय व्रत, 39. जिनेन्द्र-गुण-सम्पत्ति व्रत, 40. दिव्य-लक्षणपंक्ति व्रत, 41. परस्पर-कल्याण व्रत। ___ इन व्रतों के पालन करने की विधि ‘हरिवंश पुराण' में विस्तृत रूप से वर्णित की गयी है। इसे पाठकवृन्द अवश्य पढ़ें।
वसुनन्दि श्रावकाचार में पंचमी व्रत, रोहिणी व्रत, अश्विनी व्रत, सौख्य-सम्पत्ति व्रत, नन्दीश्वर पंक्ति व्रत तथा विमान-पंक्ति व्रतों के नाम' आये हैं।
व्रत-विधान-संग्रह में उपर्युक्त व्रतों के अतिरिक्त अनेक व्रतों का उल्लेख हुआ है। इन-सब के नाम क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी के द्वारा जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश (भाग-3) में उद्धृत हैं। तत्त्वार्थसूत्र तथा उसकी टीकाओं में अहिंसादिक पाँच व्रतों के पाँच-पाँच अतिचार व पाँच-पाँच भावनाएँ वर्णित हैं। ये भावनाएँ मुख्यत: मुनियों के लिए हैं, कदाचित् श्रावकों के लिए भी इन भावनाओं को भाने का निर्देश प्राप्त होता है। कुछ श्रावकाचार-परक ग्रन्थों में श्रावकों के बारह व्रतों में प्रत्येक व्रत के पाँच-पाँच अतिचार बतलाये गये हैं। छहढालाकार पण्डित दौलतराम जी ने कहा है
बारह व्रत के अतीचार पन पन न लगावै। मरण-समय संन्यास धारि तसु दोष नसावै।। यों श्रावकव्रत पाल स्वर्ग सोलम उपजावै।
तह चय नर-जन्म पाय मुनि दै शिव जावै॥ कहीं-कहीं रात्रिभोजन त्याग को छठा अणुव्रत कहा गया है। कहीं-कहीं उसका अहिंसाव्रत की भावनाओं के अन्तर्गत 'आलोकित पान-भोजन' भावना के अन्तर्गत समावेश किया है।
उपवास के विशिष्ट शब्द-जहाँ उपवास के लिए चतुर्थक शब्द का प्रयोग होता है, वहाँ एक उपवास; जहाँ षष्ठ शब्द आता है, वहाँ दो उपवास और जहाँ अष्टम शब्द आता है, वहाँ तीन उपवास समझना चाहिए। इसी प्रकार दशम से लेकर छह मास पर्यन्त के उपवासों की संज्ञा जाननी चाहिए।
उपवासों का विशिष्ट काल- प्रतिपदा से लेकर पंचदशी तक की तिथि में उपवास करना चाहिए। ये उपवास अनेक भेदों को लिये हुए हैं और जैनमार्ग में इन्हें सब प्रकार के सुखों से सम्पन्न करने वाला कहा है। प्रतिवर्ष भाद्रपद की शुक्लपक्ष की सप्तमी के दिन उपवास करना चाहिए। यह परिनिर्वाण-नामक विधि है तथा अनन्त-सुख रूपी फल को देने वाली है। भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन उपवास करने से प्रातिहार्यप्रसिद्धि नाम की विधि होती है तथा यह पल्यों-प्रमाण-काल तक सुख रूपी फल को फलती है। हर एक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशियों के दिन किये हुए छियासी
366 :: जैनधर्म परिचय
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