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उपवास अनन्त सुख को उत्पन्न करते हैं। मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया के दिन उपवास करना अनन्त मोक्ष फल को देने वाला है तथा इसी मास की चतुर्थी के दिन बेला करने से विमान-पंक्ति-वैराज्य नाम की विधि होती है और उसके फलस्वरूप विमानों की पंक्ति का राज्य मिलता है। व्रत की विधियों में यथाशक्ति विधियाँ करनी चाहिए, क्योंकि वे साक्षात् और परम्परा से स्वर्ग और मोक्ष सम्बन्धी सुख के कारण मारी गयी हैं।
प्रमुख व्रत–प्रत्येक व्रत का यद्यपि अपना महत्त्व है, तथापि आजकल कुछ व्रत अधिक प्रचलित हैं। जैसे
नन्दीश्वर व्रत- नन्दीश्वर द्वीप में प्रत्येक दिशा में एक अंजनगिरि, चार दधिमुख और आठ रतिकर इस प्रकार तेरह पर्वत हैं। चारों दिशाओं के मिलाकर सब 52 पर्वत हुए। इन प्रत्येक पर्वतों पर शाश्वत अकृत्रिम जिन-भवन हैं। प्रत्येक मन्दिर में 108 रत्नमय अतिशय युक्त जिनबिम्ब विराजमान हैं । ये जिनबिम्ब 500 धनुष ऊँचे हैं। यहाँ इन्द्रादि देव आकर नित्य भक्ति-पूर्वक पूजा करते हैं। मनुष्यों का वहाँ गमन नहीं होता है। अतः मनुष्य उन चैत्यालयों की स्थापना स्थापन-विधि से अपने-अपने मन्दिरों में करते हैं।
नन्दीश्वर द्वीप का मण्डल बनाकर वर्ष में तीन बार (कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष में अष्टमी से पूर्णिमा तक) आठ-आठ दिन पूजाभिषेक करते हैं
और आठ दिन व्रत भी करते हैं। इस व्रत का पालन करने वाला सप्तमी से प्रतिपदा तक ब्रह्मचर्य व्रत रखे, सप्तमी को एकाशन करें, भूमि पर शयन करे, सचित्त पदार्थों का त्याग करे, दिन में मण्डल बनाकर अभिषेक और पूजा करें। पंचमेरु की स्थापना कर पूजा करे और चौबीस तीर्थंकरों की जयमाल पढ़ें, नन्दीश्वर व्रत की कथा सुने और 'ॐ ह्रीं नन्दीश्वरसंज्ञाय नमः', -इस मन्त्र की 108 जाप करें।
नवमी को सब क्रियाएँ अष्टमी के समान ही की जाएँ। केवल 'ॐ ह्रीं त्रिलोकसार संज्ञाय नमः', इस मन्त्र की 108 जाप करे और दोपहर पश्चात् पारणा करें।
दशमी के दिन भी सब क्रिया अष्टमी के समान ही करें। 'ॐ ह्रीं त्रिलोकसार संज्ञाय नमः', –इस मन्त्र का 108 बार जाप करें तथा केवल पानी और भात भोजन में लें।
ग्यारस के दिन भी सब क्रियाएँ अष्टमी के समान करें। सिद्धचक्र की त्रिकाल पूजा करें। 'ॐ ह्रीं चतुर्मुख-संज्ञाय नमः' - इस मन्त्र की 108 बार जाप करें तथा अल्प भोजन करें।
द्वादशी को भी समस्त क्रियाएँ एकादशी के ही समान करें। 'ॐ ह्रीं पञ्चमहालक्षणसंज्ञाय नमः, इस मन्त्र को 108 बार जपें तथा एकाशन करें।
त्रयोदशी को सर्व क्रियाएँ द्वादशी के समान करें।
चतुर्दशी के दिन सब क्रियाएँ ऊपर के समान करें और 'ॐ ह्रीं सिद्धचक्राय नमः' -इस मन्त्र की जाप करें।
व्रत : जैनाचार के आधार :: 367
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