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एक बार खायें। यह व्रत 12 वर्ष का होता है। अनन्तर उद्यापन करे। उद्यापन की शक्ति न हो तो दूनी अवधि तक व्रत करें।
रविव्रत—यह व्रत रविवार को किया जाता है। प्रत्येक रविवार को उपवास या बिना नमक का इसमें भोजन किया जाता है। भोजन के पूर्व भगवान् पार्श्वनाथ का अभिषेक
और पूजन की जाती है। धर्म-ध्यान-पूर्वक इस दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया जाता है। इस दिन 'ॐ ह्रीं अहँ श्रीपार्श्वनाथाय नमः' मन्त्र का जाप देना चाहिए। नौ वर्ष व्रत कर उद्यापन करना चाहिए।
दीपमालिका व्रत- चौथे काल के जब तीन वर्ष साढ़े आठ माह शेष रह गये, तब कार्तिक मास की अमावस्या के प्रभातकाल स्वातिनक्षत्र में श्री महावीर स्वामी का निर्वाण हुआ। देवों ने आकर निर्वाण कल्याणक का उत्सव मनाया और पावानगरी में दीपोत्सव किया। इस पवित्र दिन की स्मृति में भारत में दीपावली प्रसिद्ध हई।
इस दिन यथाशक्ति उपवास या एकासन किया जाय। भगवान् महावीर की पूजन कर निर्वाण लाडू चढ़ाया जाय। सायंकाल गौतम गणधर की कैवल्य प्राप्ति की स्मृति में दीपक प्रज्ज्वलित किये जाएँ। 'ॐ ह्रीं श्री महावीर-स्वामिने नमः' -इस मन्त्र का जाप किया जाये।
पुष्पांजलि व्रत- इस व्रत में भादों शुक्ल 5 से 9 तक पाँच दिन नित्यप्रति पंचमेरु की स्थापना कर चौबीस तीर्थंकरों का अष्टद्रव्य से अभिषेक व पूजन किया जाये। पाँच अष्टक तथा पाँच जयमाला पढ़े और 'ॐ ह्री पंचमेरु-सम्बन्धि-अशीति-जिनालयेभ्यो नमः' मन्त्र का 108 बार जाप करें। पंचमी का उपवास करें और शेष दिनों में रसत्याग कर अवमौदर्य (भूख से कम भोजन) करें। सम्भव, हो तो पाँच दिन उपवास करें। रात्रि को भजन व जागरण करें। विषय (पाँच इन्द्रियों के पाँच विषय) तथा कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ) को घटावें, ब्रह्मचर्य का पालन करें और आरम्भ (घरगृहस्थी के कार्य) का त्याग करें। इस प्रकार पाँच वर्ष व्रत करके उद्यापन करें। प्रत्येक प्रकार के 5-5 उपकरण जिनालयों को भेंट में दें, पाँच शास्त्र प्रतिष्ठित करें, पाँच श्रावकों को भोजन कराएँ और चार प्रकार का दान दें।
त्रिलोक तीज व्रत- भादों शुक्ल तीज को उपवास कर भूत, भविष्यत् और वर्तमान के चौबीसों तीर्थंकरों के 72 कोठे का मण्डल माँडकर तीन चौबीसी पूजा विधान करे। तीनों काल 'ॐ ह्रीं भूतवर्तमानभविष्यत्काल-सम्बन्धि-चतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्यो नमः' -इस मन्त्र का जाप करें। इस प्रकार तीन वर्ष तक यह व्रत कर पश्चात् उद्यापन करें अथवा द्विगुणित वर्ष व्रत करें। कई लोग इस व्रत को 'रोटतीजव्रत' भी कहते हैं। उद्यापन करने के समय तीन चौबीसी का मण्डल माँड़कर बड़ा विधान करे और प्रत्येक प्रकार के तीन-तीन उपकरण भी जिन-मन्दिर में भेंट करें। चार संघ (मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका) को चार प्रकार का दान दें तथा शास्त्र भेंट करें।
व्रत : जैनाचार के आधार :: 369
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