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करके जप का संकल्प अवधिपूर्वक करते हैं। जपकर्ता शुद्ध धोती दुपट्टे में सूर्योदय से सूर्यास्त के काल में जप के दोषों का परिहार करते हुए जप करके अनुष्ठान की सफलता में सहयोगी होते हैं।
जपकर्ताओं को विश्वशान्ति कल्याण कामना (हवन) में सम्मिलित होना अनिवार्य है।
महिलाओं को मुख्य जाप कक्ष में न बिठाकर मन्दिर प्रांगण में उनका स्थान निश्चित करके जप कराते हैं। उनकी जाप की गणना पृथक् से की जाती है। सामूहिक जप में समाज के श्रावक-श्राविकाएँ, बालक-बालिकाएँ सभी को सम्मिलित करना चाहिए।
ध्वज-स्थापन–प्रत्येक अनुष्ठान का शुभारम्भ शुभलग्न, शुभतिथि, शुभवार, शुभयोग एवं शुभकरण में ध्वज-स्थापन द्वारा किया जाता है। ध्वज-स्थापन-कर्ता संयमी, श्रावकोचित चर्या वाला, देव-शास्त्र-गुरु के प्रति श्रद्धालु परिवार सहित हो। वह शुद्ध धोती दुपट्टा पहिनकर अनुष्ठान क्रियाएँ सम्पादित करे। ध्वज-स्थल वेदी के ठीक सामने बनाकर जाप, भक्ति-पाठ, यन्त्र-पूजा, ध्वजप्रतिष्ठा-पूजा करके ध्वज-स्थापन क्रिया करें। ___ध्वज-स्थापन के समय ध्वज-स्थल पर चतुर्निकाय देवताओं, शासन-रक्षक देवताओं एवं क्षेत्ररक्षक देवताओं का आह्वान करके अनुष्ठान हेतु आज्ञा प्राप्त करते हैं, उनसे अनुष्ठान में सम्मिलित होकर पुण्यार्जन करने एवं अनुष्ठान को जिनशासन की महिमा, गरिमा और प्रभावनापूर्वक सम्पन्न करने हेतु निवेदन करते हैं। ___ध्वज-स्थापन स्थल की शुद्धि मन्त्रोक्त विधि से वायुकुमार, मेघकुमार एवं अग्निकुमार जाति के देवों के माध्यम से करके ध्वज-दण्ड एवं ध्वज की शुद्धि करके मंगल-कलश एवं दीपक स्थापित किया जाता है।
ध्वज-स्थापन के समय ध्वज लहराने की दिशा से अनुष्ठान की सफलता का संकेत मिलता है। यदि ध्वज विपरीत दिशा में फहराता है, तो वृहत्-शान्ति-मन्त्र, शान्तिविधान करके शान्ति-क्रिया की जाती है।
घट-यात्रा-नदी, सरोवर या कूप के तट पर देवाज्ञापूर्वक जलमण्डल यन्त्र के माध्यम से सामान्य जल में पद्म-महापद्मादि एवं गंगा, सिन्धु आदि नदियों के जल का मन्त्र संस्कार करके पवित्र करते हैं। प्रत्येक कलश को जल से शुद्ध करके, कलावा वेष्टित कर, सिद्धार्था (पीली सरसों) पुंग (सुपारी), हरिद्रा (हल्दी गाँठ) डालकर 81 कोष्ठ मण्डल पर स्थापित करते हैं। तीर्थमण्डल पूजा करके स्वर्ण सौभाग्यवती बहिनों द्वारा 81 मन्त्रों द्वारा कलश-शुद्धि, दिक्कन्याओं द्वारा जल से परिपूर्ण कर समस्त सौभाग्यवती महिलाओं एवं कन्याओं को देकर घट-यात्रा-जुलूस अनुष्ठान स्थल तक ले जाते हैं। ___ वहाँ पंडाल, पंचकल्याणक वेदी, मूल वेदी, श्रुत वेदी, अनुष्ठान वेदी एवं हवन कुण्डों की शुद्धि 81 मन्त्रों द्वारा करते हैं। मूल वेदी का दिक्कन्याओं, वायुकुमार, मेघकुमार, अग्निकुमार एवं नागकुमार जाति के देवों के माध्यम से संस्कार करके बिम्ब
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