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गाढ़ दृष्टि-अशुभकारक ऊर्ध्वदृष्टि-भार्यानाश बड़ा उदर-उदर-रोगकारक हीन अंस-पुत्र-नाशकारक अंग छोटे हों-क्षयकारक छोटा मुख-भोग-विनाशक हीन जंघा-पुत्र-मित्र-विनाशक हीन हस्त एवं चरण-धन-क्षयकारक अधोमुख-चिन्ताकारक ऊँचा-नीचा मुख-विदेश गमन अन्याय के धन से निर्मित–दुष्काल-कारक रौद्र रूप-बिम्ब निर्माता का नाश दुर्बल अंग-द्रव्य का नाश तिरछी दृष्टि-अपूजनीय-विरोधकारक अधोदृष्टि-विघ्नकारक-पुत्रनाश नेत्ररहित-नेत्र-नाशकारक हीनाधिक हृदय-हृदय-रोगकारक खण्डित जिनबिम्ब का फल
रथोत्सव, विमानोत्सव एवं अन्य नित्य अनुष्ठानों में धातु के बिम्ब ही स्थापित करना चाहिए। पाषाण या कोमल सन्धि वाले जिनबिम्ब स्थापित नहीं करना चाहिए।
खण्डित प्रतिमा का प्रभाव व्यक्ति के परिवार के साथ-साथ समाज तथा पूजक पर भी पड़ता है। इसलिए खण्डित अंग की प्रतिमा को मूलनायक के रूप में विराजमान नहीं करना चाहिए।
नख खण्डित होने पर-शत्रुभय कारक बाहु खण्डित होने पर-बन्धन कारक चरण खण्डित होने पर-द्रव्य क्षयकारक चिह्न खण्डित होने पर-वाहन विनाशक छत्र खण्डित होने पर-लक्ष्मी विनाशक कान खण्डित होने पर-बन्धु विनाशक अंगुलि खण्डित होने पर-देश विनाशकारक नासिका खण्डित होने पर-कुल विनाशकारक पादपीठ खण्डित होने पर-स्वजन विनाशक
340 :: जैनधर्म परिचय
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