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विशेषता को 'गुण-पर्याय या गुण की पर्याय' कहते हैं, अथवा जितने समय तक उस द्रव्य की वह पर्याय रहेगी, उतने समय तक उस पर्याययुक्त द्रव्य के जो गुण या विशेषताएँ हैं; उन्हें ही 'गुण-पर्याय' नाम से कहा जाता है। 'द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा:'इस नियम के अनुसार स्वयं निर्गुण होने से परिणमन करने का गुण, गुण में नहीं होता, गुण तो द्रव्य का अनुगमन करते हैं। द्रव्य नित्यानित्य है, तो गुण भी नित्यानित्य हैं। द्रव्य, द्रव्यदृष्टि से नित्य है, तो गुण भी उस दृष्टि से नित्य है तथा द्रव्य, पर्यायदृष्टि से अनित्य है, तो उसके गुण भी उस दृष्टि से अनित्य हैं; अतः द्रव्य जिस रूप में परिणमन करता है, उसी रूप में उसके गुण हो जाते हैं, इसी को 'गुण-पर्याय' कहते हैं।
द्रव्य ही सर्वशक्तिमान वस्तु- इस सम्पूर्ण विश्व में द्रव्य ही सर्वशक्तिमान वस्तु है, पदार्थ है; उसके ही गुण होते हैं, वही परिणमन करता है, उसके ही प्रदेश होते हैं। प्रदेश, गुण, पर्याय आदि सब द्रव्य के ही विभाग हैं, अंश हैं; अत: उन प्रदेश, गुण, पर्याय आदि में स्वयं कुछ शक्ति नहीं है अथवा बिना द्रव्य के वे कुछ- भी कार्यकारी नहीं हैं, सबकुछ द्रव्य का ही है। प्रदेश की पर्यायें या गुण कहना, गुणों के प्रदेश या पर्यायें कहना या पर्यायों के प्रदेश या गुण कहना- ये सब उपचरित कथन हैं। वास्तव में द्रव्य के ही प्रदेश होते हैं, द्रव्य के ही गुण होते हैं और द्रव्य की ही पर्यायें होती हैं। द्रव्य चूँकि अपने प्रदेशों में रहता है। अतः गुण भी उन्हीं प्रदेशों में रहते हैं, पर्यायें भी उन्हीं प्रदेशों में होती हैं, परन्तु गुण या पर्याय का प्रदेशों से कुछ लेना-देना नहीं है। बस, इतना ही उनका सम्बन्ध है कि प्रदेश भी उसी द्रव्य के हैं और गुण भी उसी द्रव्य के हैं और पर्यायें भी उसी द्रव्य की हैं।
द्रव्य में प्रदेश रहते हैं या द्रव्य प्रदेशवान् है अर्थात् द्रव्य सदा अपने प्रदेशों में रहता है -ऐसा प्रदेशत्वगुण या नियतप्रदेशत्वशक्ति द्रव्य की है, परन्तु प्रदेश तो क्षेत्रवाची है; अतः प्रदेश कोई गुण नहीं है, बल्कि प्रदेशत्व, द्रव्य का गुण है। इसी प्रकार द्रव्य की प्रति-समय कोई न कोई पर्याय होती है – ऐसी परिणमनशक्ति या द्रव्यत्वगुण द्रव्य का है, परन्तु पर्याय स्वयं कोई गुण नहीं है, पर्यायत्व द्रव्य का गुण अवश्य है। इसी पर्यायत्व नामक गुण को ही आगम की भाषा में द्रव्यत्वगुण कहा गया है।
परिणमन किसका? द्रव्य का, गुण का या पर्याय का
इस प्रश्न का समाधान जानने से पूर्व हमें यह जानना जरूरी है कि सामान्यतया पर्याय को परिणमनशील कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पर्याय परिणमन करती है, द्रव्य या गुण परिणमन नहीं करते; परन्तु वास्तव में पर्याय अंश परिणमन नहीं करता, क्योंकि वह स्वयं तो क्षणिक है; जो स्वयं क्षणिक है, वह परिणमन कैसे करेगा? इसी प्रकार ध्रौव्य अंश भी परिणमन नहीं करता, क्योंकि वह तो स्थिर है; जो स्वयं स्थिर है, वह परिणमन कैसे करेगा? अतः द्रव्य ही परिणमन करता है और उसके वर्तमानकालीन परिणमन की ही पर्याय संज्ञा है। पर्याय तो स्वयं नष्ट हो जाती है, अत: वह परिणमन कैसे कर सकती
द्रव्य-गुण-पर्याय :: 251
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