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पूर्वक किया गया नियम व्रत कहलाता है । अथवा यह मेरे लिए कर्तव्य है, यह मेरे लिए अकर्तव्य है, इस प्रकार के विवेक को व्रत कहते हैं ।
दूसरे शब्दों में किसी कार्य को करने या न करने का मानसिक निर्णय व्रत है । व्यवहार में इसे संकल्प कहा जाता है । संकल्प और व्रत में वास्तविक अन्तर है, क्योंकि संकल्प शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के हो सकते हैं, किन्तु व्रत सदा शुभ ही होता है।
व्रतों के भेद - प्रभेद - मूलतः व्रतों को दो भेदों में विभक्त कर सकते हैं। एक अणुव्रत और दूसरा महाव्रत । गृहस्थाश्रम में पालनीय व्रत अणुव्रत कहलाते हैं । मुनि अवस्था में धारण करने वाले व्रत महाव्रत कहलाते हैं। वैसे तो पाँच महाव्रतों और पाँच अणुव्रतों के नाम में साम्य है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ही महाव्रत के हैं तथा ये ही नाम अणुव्रत के भी हैं; परन्तु इनके पालन में बहुत अन्तर है। महाव्रतों में अहिंसा आदि का पूर्णरूप से पालन करना होता है, जबकि अणुव्रतों में अहिंसा आदि का आंशिक रूप से पालन किया जाता है । इसीलिए व्रतों के नाम की दृष्टि से अणुव्रत और महाव्रत में कोई अन्तर नहीं है, दोनों ही मोक्षयात्रा के लिए अपने-अपने स्थान पर अनिवार्य हैं।
गृहस्थ हिंसादिक का पूर्ण त्यागी नहीं हो सकता है, अतएव वह एकदेश-व्रतों का पालन करने वाला होता है । एकदेश- व्रती पाँचों अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों और चार शिक्षाव्रतों का भली प्रकार से पालन करता है ।
अणुव्रत
जब किसी सम्यग्दृष्टि जीव के अप्रत्याख्यानावरण का अनुदयरूप क्षयोपशम होता है, तब उसके हिंसादि पाँचों पापों का एकदेश त्याग होता है और ये ही पाँच प्रकार अणुव्रत कहलाते हैं- 1. अहिंसाणुव्रत, 2. सत्याणुव्रत, 3. अचौर्याणुव्रत, 4. ब्रह्मचर्याणुव्रत, 5. परिग्रहपरिमाणव्रत ।
अहिंसाणुव्रत - अहिंसा जैनाचार का प्राण तत्त्व है । इसे ही परमब्रह्म और परमधर्म कहा गया है । प्रत्येक आत्मा चाहे वह सूक्ष्म हो या स्थूल, स्थावर हो या त्रस, तात्त्विक दृष्टि से समान है । मन, वचन और काया से किसी भी प्राणी को कष्ट पहुँचाने से बचाये रखना ही सच्ची अहिंसा है । 'ना हिंसा अहिंसा, ईषत् हिंसा अहिंसा' अर्थात् हिंसा का न होना तो अहिंसा है ही, लेकिन ऐसी अल्प हिंसा, जो रोकी नहीं जा पा रही है, ईषत् अहिंसा है, वही एकदेश अहिंसाव्रत है । श्रीमद् उमास्वामी ने कहाप्रमाद के वशीभूत होकर प्राणों का व्यपरोपण करना हिंसा है" तथा इसके विपरीत अहिंसा है।
गृहस्थ जीवन में हिंसा चार प्रकार से हो सकती है - 1. संकल्पी हिंसा, 2. विरोधी
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श्रावकाचार :: 315