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इसलिए अहिंसकवृत्ति को धारण करने के लिए आवश्यक है कि मन, वचन और काय से सर्वप्रकार के जीवों की रक्षा करे। किसी पदार्थ को रखते हुए, उठाते हुए उपलक्षण से किसी बन्धु के साथ व्यवहार करते समय इस बात का अवश्य विचार करे कि मेरे द्वारा किसी जीव को पीड़ा तो नहीं पहुंच रही है। इसी प्रकार आलोकित पान-भोजन अर्थात् सूर्य प्रकाश में अच्छी तरह देखभाल कर वह आहार ग्रहण करे। इससे रात्रिभोजन का निषेध किया गया है। अहिंसा की रक्षा के लिए रात्रि-भोजन का त्याग करना आवश्यक है। इन भावनाओं से अहिंसा व्रत में निर्मलता आती है।
व्रतों को निरतिचार रूप पालन करने में ही उसका महत्त्व है। अतिचारों में व्रत को भंग कर अनाचार करने की भावना व्रत पालने वाले के हृदय में नहीं होती, तथापि गृहस्थ जीवन में रहते हुए इस प्रकार की प्रवृत्ति घटती है, इस सम्बन्ध में वह पश्चाताप भी करता है, इसलिए उसे अनाचार संज्ञा नहीं दी जा सकती है। वह अनाचार नहीं है, क्योंकि वह व्रत से भ्रष्ट नहीं होता है, वह निर्दोष व्रत भी नहीं है, क्योंकि उसमें अंशमात्र हिंसा की घटना होती है। इसलिए व्रती साधक को उचित है कि वह व्रतों को हमेशा निरतिचारपूर्वक ही पालने का प्रयत्न करे। ____ अहिंसाणुव्रत के अतिचार-स्थूल प्राणातिपातविरमण (अहिंसाणुव्रत) के मुख्य पाँच अतिचार हैं-बन्ध, वध, छेद, अतिभारारोपण और अन्नपाननिरोध ।
1. बन्ध-किसी त्रस प्राणी को कष्ट देने वाले बन्धन में बाँधना। उसे इष्ट स्थान को जाते हुए रोकना, अपने अधीन जो व्यक्ति है, उन्हें निर्दिष्ट समय से अधिक रोककर उनसे अधिक कार्य लेना आदि भी बन्ध के ही अन्तर्गत हैं। यह बन्धन शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक आदि विविध प्रकार का है।
2. वध-किसी भी त्रस प्राणी को मारना वध है। अपने अधीनस्थ व्यक्तियों को या अन्य प्राणियों को लकड़ी, चाबुक या पत्थर आदि से मारना, उन पर अनावश्यक आर्थिक भार डालना, किसी की भी लाचारी का अनुचित लाभ उठाना, अनैतिक दृष्टि से शोषण कर उससे लाभ उठाना आदि वध के ही अन्तर्गत है। जिस कार्य से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप त्रस प्राणियों की हिंसा होती है, वह वध है। ___3. छेद-किसी प्राणी के अंगोपांग काटना, विच्छेद के समान वृत्तिच्छेद करना भी अनुचित है। किसी की सम्पूर्ण आजीविका का छेद करना अथवा उचित पारिश्रमिक से कम देना आदि भी छेद के सदृश ही दोष-युक्त है। ____4. अतिभार-बैल, ऊँट, घोड़ा, प्रभृति पशुओं पर या अनुचर अथवा कर्मचारियों पर उनकी शक्ति से अधिक बोझ लादना अतिभार है। किसी से शक्ति से अधिक कार्य करवाना भी अतिभार है।
5. अन्नपाननिरोध-समय पर भोजन-पानी आदि न देकर, नौकर आदि को समय
श्रावकाचार .. 317
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