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है। इसका उदय चारों गति के जीवों के हो सकता है।
(उ) अज्ञान-भाव- ज्ञानावरण कर्म के उदय से ज्ञान की सम्पूर्णता नहीं हो पाती है। अज्ञान भाव तो केवलज्ञान होने से पूर्व रहता ही है। अतः ज्ञानावरण-कर्म के उदय से ज्ञान में कमी रूप जो अज्ञान-भाव रहता है, वह औदयिक भाव है। यह मनुष्यगति में बारहवें गुणस्थान तक तथा शेष गतियों के प्रत्येक जीव के पाया जाता है।
(ऊ) असंयत-भाव- चारित्र मोह की अनन्तानुबन्धी तथा अप्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से, पाँच इन्द्रिय तथा मन के विषयों एवं छह काय की हिंसक प्रवृत्ति से दूर न होने रूप असंयत-भाव होता है। सभी नारकी एवं सभी देवों के इसका उदय पाया जाता है। चतुर्थ गुणस्थान तक के तिर्यंच एवं मनुष्यों के भी इसका उदय होता ही है।
(ए) असिद्धत्व-भाव– कर्मोदय सामान्य की अपेक्षा यह भाव होता है। जब तक कर्मों का उदय रहता है, तब तक सिद्ध-अवस्था प्राप्त न होने रूप असिद्धत्व- भाव रहता है। इसका उदय समस्त संसारी जीवों के होता ही है।
(ऐ) लेश्या-भाव- जिसके द्वारा जीव पुण्य-पाप से अपने को लिप्त करता है, वह लेश्या-भाव है। इसी शुभ तथा अशुभ रूप भाव के कारण आत्मा कर्मों से युक्त होती है। कषाय तथा योग के उदय के कारण लेश्या-भाव होता है। इसके छह भेद हैं(1) कृष्ण लेश्या- तीव्रतम कषाय के उदय से होने वाले परिणाम।
WORST परिणाम । गुणस्थान एक से चार तक। (2) नील लेश्या- तीव्रतर कषाय के उदय से होने वाले परिणाम।
WORSE परिणाम । गुणस्थान एक से चार तक। (3) कापोत लेश्या- तीव्र कषाय के उदय से होने वाले परिणाम।
BAD परिणाम । गुणस्थान एक से चार तक। (4) पीत लेश्या- मन्द कषाय के उदय से होने वाले परिणाम।
GOOD परिणाम । गुणस्थान एक से सात तक। (5) पद्म लेश्या- मन्दतर कषाय के उदय से होने वाले परिणाम।
BETTER परिणाम । गुणस्थान एक से सात तक। (6) शुक्ल लेश्या- मन्दतम कषाय के उदय से होने वाले परिणाम ।
BEST परिणाम। गुणस्थान एक से तेरह तक। सामान्य से सभी नारकी प्रथम तीन अशुभ लेश्या वाले होते हैं। सभी देव शेष तीन शुभ लेश्या वाले होते हैं। मनुष्य एवं तिर्यंचों में यथा-योग्य छहों लेश्याएँ सम्भव हैं। मिथ्यादृष्टि जीव के भी छहों लेश्याएँ सम्भव हैं। अर्हन्त-परमेष्ठी के भी योग होने के कारण शुक्ल-लेश्या होती है। अयोग-केवली, कषाय एवं योग से सम्पूर्णतया रहित होने के कारण लेश्या-रहित होते हैं । मुक्त जीवों के लेश्या नहीं होती हैं। लेश्या के दो भेद भी कहे जाते हैं- द्रव्य लेश्या तथा भाव लेश्या। द्रव्य लेश्या का सम्बन्ध शरीर के वर्ण से है,
268 :: जैनधर्म परिचय
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