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पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । इनसे क्षायिक भाव वाले संसारी जीव बहुत अधिक हैं तथा सिद्धों की अपेक्षा अनन्त हैं । क्षायोपशमिक भाव वाले जीव, क्षायिक भाव वालों से आवलि के असंख्यातवें भाग गुणकार अधिक हैं अर्थात् अनन्त हैं । औदयिक भाव वाले जीव इनसे भी अधिक हैं, जो अनन्त हैं तथा पारिणामिक भाव वाले जीव अनन्तानन्त हैं अर्थात् सूत्र में भावों का क्रम, संख्या की अपेक्षा भी बिल्कुल उचित है।
(4) गुणस्थान की अपेक्षा, औपशमिक भाव - 4 से 11 तक, क्षायिक भाव - 4 से सिद्ध तक, क्षायोपशमिक भाव - 1 से 12 तक, औदयिक भाव - 1 से 14 तक तथा पारिणामिक भाव - 1 से सिद्ध जीव तक पाये जाते हैं ।
(5) उपर्युक्त पाँच भावों में से औदयिक - भाव बन्ध करने वाले हैं, औपशमिक, क्षायिक तथा क्षायोपशमिक भाव मोक्ष के कारण हैं तथा पारिणामिक भाव, बन्ध और मोक्ष दोनों के कारण से रहित है'। परन्तु सभी औदयिक - भाव बन्ध में कारण नहीं हैं । औदयिक भावों के 21 भेदों में से, चार गति, अज्ञान तथा असिद्धत्व भाव को छोड़कर, शेष 15 भाव बन्ध में कारण हैं।
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(6) उपर्युक्त पाँचों भाव जीवों में पाये जाते है । अन्य द्रव्यों की अपेक्षा, पुद्गल द्रव्यों में औदयिक तथा पारिणामिक-भाव तथा अन्य चार द्रव्यों में (धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल द्रव्य) केवल पारिणामिक-भाव पाये जाते हैं । 10
(7) क्षायिक भावों में, क्षायिक - सम्यक्त्व - भाव वाला जीव उसी भव में भी मोक्ष जा सकता है और अधिक से अधिक चौथे भव का उल्लंघन नहीं करता है। शेष क्षायिक- भाववाले जीव उसी भव से मोक्ष प्राप्त करते हैं ।
(8) औदयिक भावों में, असिद्धत्व भाव तो प्रथम गुणस्थान से लेकर दसवें गुणस्थान तक आठों कर्मों के उदय की अपेक्षा से है । 11 तथा 12वें गुणस्थान में मोहनीय को छोड़कर शेष सात कर्मों की अपेक्षा से तथा तेरहवें एवं चौदहवें गुणस्थान में चार अघातिया कर्मों के उदय से असिद्धत्व भाव होता है ।
(9) सिद्ध परमेष्ठी में 9 क्षायिक भाव तथा एक जीवत्व पारिणामिक-भाव होता है। संक्षेप से सिद्ध जीवों में क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक दर्शन, क्षायिक ज्ञान, क्षायिक चारित्र, क्षायिक वीर्य = ये पाँच क्षायिक भाव तथा जीवत्व पारिणामिक-भाव होता है।"
(10) भव्यत्व पारिणामिक भाव का, चौदहवें गुणस्थान के अन्तिम समय में नाश हो जाता है । अत: सिद्ध परमेष्ठी के भव्यत्व-भाव नहीं होता ।
(11) वर्तमान पंचम काल में किसी भी जीव के पाँचों भाव सम्भव नहीं हैं, क्योंकि इस काल में क्षायिक भावों का अभाव है। वर्तमान में हम सभी मनुष्यों के क्षायोपशमिक, औदयिक तथा पारिणामिक, ये तीन भाव तो निरन्तर प्रति समय रहते हैं । कदाचित् उपशम सम्यक्त्व के प्राप्ति काल में चार भाव भी एक समय में सम्भव हैं ।
(12) यदि कोई क्षायिक सम्यक्त्वी जीव, उपशम श्रेणी आरोहण करे, तो 8वें से 11वें
270 :: जैनधर्म परिचय
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