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क्र.
गतियों की अपेक्षा गुणस्थान
नरक और देवगति के जीव प्रथम से चतुर्थ गुणस्थान तक प्राप्त कर सकते हैं । उससे ऊपर के गुणस्थानों को प्राप्त करने की पात्रता उनमें नहीं रहती । तिर्यंचों में एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के एकमात्र प्रथम गुणस्थान होता है। मन का अभाव होने के कारण ये ऊपर के गुणस्थानों को प्राप्त नहीं कर पाते हैं । संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच तथा मनुष्यपर्याय में स्त्री शरीर को प्राप्त जीव देशसंयम को प्राप्त कर सकते हैं। अत: उनमें प्रथम से पंचम गुणस्थान तक होते हैं। मनुष्य अवस्था वाला जीव अपने आत्मा का परिपूर्ण विकास कर सकता है, अतः मनुष्यों में सभी गुणस्थान पाये जाते हैं। वर्तमान काल के भरत क्षेत्र के मनुष्य मुनिराज अवस्था तक पहुँच कर भी सप्तम गुणस्थान से ऊपर नहीं जाते; क्योंकि वर्तमान में उत्कृष्ट पुरुषार्थ व उत्तम संहनन का अभाव है ।
गुणस्थानों से आरोह-अवरोह का क्रम
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
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12.
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14.
गुणस्थान
मिथ्यात्व अनादि
सादि
संयतासंयत
प्रमत्तसंयत
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अप्रमत्तसंयत
अपूर्वकरण
अनिवृत्तिकरण
सासादन
मिश्र
4
अविरत सम्य. औपशमिक 5,7
अविरत सम्य. क्षायिक 5,7
अविरत सम्य. क्षायोपशमिक 5,7
7
सूक्ष्मसाम्पराय
उपशान्तमोह
क्षीणमोह
सयोगकेवली जिन
अयोगकेवली जिन
आरोहण
4,5,7
3,4,5,7
X
7
8
9
10
11, 12
13
14
मोक्ष
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अवरोहण
1
1
सासादन पूर्वक 1
X
3,1
4,3,2,1
5,4,3,2,1
6,4 (मरण की अपेक्षा)
7,4 (मरण की अपेक्षा)
8,4 (मरण की अपेक्षा)
9,4 (मरण की अपेक्षा)
10,4 (मरण की अपेक्षा)
X
X
X
कर्म सिद्धान्त, गुणस्थान एवं लेश्या :: 291