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हैं। ऐसा जीव धूमप्रभा नरक से अन्तिम नरक तक जन्म लेता है।
(2) नील लेश्या - जो स्वयं तो धर्मक्रिया पालता नहीं है, किन्तु दूसरों को पालने में बाधक नहीं होता, बहुत निद्रालु हो, पर-वंचन (ठगविद्या) में अति दक्ष हो, धनधान्य के संग्रहादिक में तीव्र लालसा वाला हो, विषयों में आसक्त, मतिहीन, लोभ से अन्धा, प्रचुर माया प्रपंच में संलग्न, कायर और कार्यानिष्ठा, और बहु संज्ञा युक्त अर्थात् आहार, भय, मैथुन, परिग्रह रूप संज्ञाओं में आसक्त परिणति नील लेश्या युक्त जीव की होती है। ऐसा जीव धूमप्रभा नरक तक जन्म लेता है।
(3) कापोत लेश्या-जो स्वयं धर्मक्रिया पालता तो है, पर स्वरूप की समझ नहीं है, दूसरों के ऊपर रोष करता हो, दूसरों की निन्दा करता हो, दूषण बहुल हो, शोक बहुल हो, भय बहुल हो, दूसरों से ईर्ष्या करता हो, पर का पराभव करता हो, नाना प्रकार से अपनी प्रशंसा करता हो, पर का विश्वास न करता हो, दूसरों को अपने से हीन मानता हो, स्तुति किये जाने पर अति सन्तुष्ट हो, अपनी हानि और वृद्धि को न जानता हो, रण में मरण का इच्छुक हो, स्तुति या प्रशंसा किये जाने पर बहुत धनादिक देवे, कर्तव्य-अकर्तव्य को कुछ भी न गिनता हो, जीवन निराश हो, ऐसे परिणाम कापोत लेश्या में होते हैं।
(4) पीत लेश्या-जो अनुपयोगी कार्यों में ज्यादा व्यस्त रहे, उपयोगी कार्य कम करता हो, पर न्याय-नीतिपूर्वक करता हो, अपने कर्तव्य और अकर्तव्य, और सेव्यअसेव्य को जानता हो, सबमें समदर्शी हो, दया और दान में रत हो, मृदुभाषी हो, दृढ़ता, मित्रता, सत्यवादिता, स्वकार्य पटुतायुक्त लक्षण तेजो लेश्या या पीतलेश्या के होते हैं। ___(5) पद्म लेश्या-जो उपयोगी कार्य-बहुलता में रहे, त्यागी हो, भद्र हो, चोखा (सच्चा) हो, उत्तम काम करने वाला हो, बहुत ही अपराध या हानि होने पर क्षमा कर दे, साधुजनों के गुणों के पूजन में निरत हो, सात्विकदान, पाण्डित्य परिणाम युक्तता पद्मलेश्या के अन्तर्गत होती है। ___(6) शुक्ल लेश्या-जो उदय प्रमाण संयोगों में माध्यस्थ्य भाव रखता हो, पक्षपात न करता हो, निदान न करता हो, सबमें समान व्यवहार करता हो, जिसे पर में रागद्वेष व स्नेह न हो, निर्वैर, वीतरागता, शत्रु के भी दोषों पर दृष्टि न देना, निन्दा न करना, पाप कार्यों से उदासीनता, श्रेयोमार्ग की रुचि आदि शुक्ल लेश्या के लक्षण हैं।
उक्त कृष्णादि छहों लेश्याओं से रहित, पंचपरावर्तन रूप संसार से जो निकल गये हैं, अनन्त सुखी हैं, आत्मोपलब्धि रूप सिद्धपुरी को सम्प्राप्त हैं, ऐसे अयोग केवली और सिद्ध जीव अलेश्य जानना चाहिए।
लेश्या से परिचित होने के लिए प्रसिद्ध चित्र के माध्यम से भी समझ सकते हैं। फल प्राप्ति के लिए गृद्धता के आधार पर ही लेश्या समझने योग्य है।
कर्म सिद्धान्त, गुणस्थान एवं लेश्या :: 293
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