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है ? परिणमनशीलता द्रव्य का स्वभाव है, अतः यदि पर्याय परिणमन करके नवीन पर्याय को उत्पन्न करे, तो वह नष्ट ही नहीं होगी, क्योंकि स्वयं नष्ट होनेवाला दूसरे को उत्पन्न कैसे करेगा? यदि वह नष्ट नहीं हो, तो नवीन पर्याय होगी ही नहीं । वास्तव में वह पूर्व पर्याय अपने को नष्ट भी नहीं करती, क्योंकि वह तो स्वयं विद्यमान है, अतः जो स्वयं विद्यमान है, वह स्वयं को नष्ट नहीं कर सकती; अतः द्रव्य ही स्वयं ध्रुव रह कर पूर्व पर्याय को नष्ट करता है और नवीन पर्याय को उत्पन्न करता है। इससे सिद्ध होता है कि द्रव्य ही उत्पाद-व्यय- ध्रौव्य से युक्त होकर परिणमन करता है ।
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जब द्रव्य, उत्पाद-व्यय - ध्रौव्य से युक्त है तो उसके अंशभूत गुण और पर्याय भी स्वाभाविकरूप से उत्पाद - व्यय - ध्रौव्यात्मक सिद्ध होते हैं। वास्तव में मूलतः तो द्रव्य ही सत् है और वही उत्पाद - व्यय - ध्रौव्यात्मक है; परन्तु द्रव्य, गुण-पर्यायों से भिन्न वस्तु नहीं है; अतः गुण- पर्याय भी उत्पाद - व्यय - ध्रौव्यात्मक हैं ।
दूसरी बात यह है कि उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य की सिद्धि पर्याय के द्वारा ही होती है अर्थात् द्रव्य उत्पाद-व्यय - ध्रौव्यात्मक है, परन्तु उत्पाद-व्यय- ध्रौव्य द्रव्य की पर्यायों के आश्रित ही होते हैं, पर्यायों में ही उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य परिलक्षित होते हैं और पर्यायें द्रव्य में होती हैं; अतः उत्पाद-व्यय- ध्रौव्य भी द्रव्य के ही सिद्ध होते हैं - यही द्रव्य की उत्पाद-व्यय- ध्रौव्यात्मकता है। 45
पर्यायों के भेद-प्रभेद
पर्याय के मुख्यतः दो भेदों का कथन अनेक प्रकार से किया जाता है
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1. द्रव्यपर्याय और गुणपर्याय - पर्यायें द्रव्यात्मक भी होती हैं और गुणात्मक भी । 47 पर्यायें दो प्रकार की होती हैं- द्रव्यपर्याय और गुणपर्याय ।
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जो अनेक द्रव्यात्मक एकता की प्रतिपत्ति की कारणभूत है, वह द्रव्यपर्याय है 19 जिन पर्यायों में गुणों के माध्यम से अन्वय-रूप एकत्व का ज्ञान होता है, उन्हें गुणपर्याय कहते हैं। 50
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द्रव्यपर्याय के दो भेद हैं- स्वभाव - द्रव्यपर्याय और विभावद्रव्यपर्याय । स्वभावद्रव्यपर्याय सब द्रव्यों में समान है। 51 विभावद्रव्यपर्याय के दो भेद हैंसमानजातीयविभावद्रव्यपर्याय और असमानजातीयविभावद्रव्यपर्याय । 52
गुणपर्याय के दो भेद हैं— स्वभाव- - गुणपर्याय और विभाव-गुणपर्याय । स्वभावगुणपर्याय के दो भेद हैं- साधारणस्वभाव - गुणपर्याय और विशेषस्वभाव-गुणपर्याय । अगुरुलघुगुण के निमित्त से होनेवाली षड्गुणी हानि - वृद्धिरूप पर्याय साधारणस्वभाव - गुणपर्याय है। जीवद्रव्य में होनेवाली केवलज्ञानादिरूप पर्यायें विशेषस्वभाव - गुणपर्याय हैं। 53 रागादिपर्यायें विभावगुणपर्यायें हैं।
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2. स्वभावपर्याय और विभावपर्याय पर्याय के दो भेद हैं- स्वभावपर्याय और
252 :: जैनधर्म परिचय
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