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गुणरूप पृथक् पदार्थ क्यों नहीं?
शंका-नौ पदार्थों या सात तत्त्वों में द्रव्यरूप और पर्यायरूप पदार्थ या तत्त्व तो माने गये हैं, परन्तु गुणरूप पदार्थ या तत्त्व नहीं माने गये - इसका क्या कारण है?
समाधान --- क्योंकि गुण, द्रव्यों या पदार्थों के आश्रय से ही रहते हैं, उनका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। यद्यपि पर्यायों का भी स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है, वे भी द्रव्य के आश्रय से ही रहती हैं, तथापि व्यंजन-पर्याय-रूप कुछ स्थूलपर्यायों की पदार्थ संज्ञा आगम में वर्णित है। पदार्थ होने से उनकी विशेषताओं का होना और जानना भी जरूरी है, अत: उन व्यंजनपर्यायरूप पदार्थों की विशेषताओं को भी गुण ही कहा जाएगा। द्रव्य और गुण के दो रूप
द्रव्य और गुणों के दो रूप देखने में आते हैं - एक शक्ति रूप और दूसरा व्यक्तिरूप। तात्पर्य यह है कि शक्तिरूप में उसकी त्रैकालिक व्यक्तियों के दर्शन हो सकते हैं। जबकि व्यक्ति रूप में केवल वर्तमानपर्याय या व्यक्त रूप के ही दर्शन होते हैं। जैसे- मिथ्यादृष्टि आत्मा में या उसके ज्ञानगुण में केवलज्ञान की शक्ति तो है, परन्तु वर्तमानपर्याय में यथायोग्य कुमति-कुश्रुत-ज्ञान होने से केवलज्ञान का अभाव है। इसी प्रकार सर्व गुणों और सर्व द्रव्यों में शक्ति-रूप और व्यक्ति-रूप को स्पष्टतया जानना चाहिए।
पर्याय का विशेष स्वरूप
पर्याय का विशद स्पष्टीकरण करते हए क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी कहते हैं- 'पर्याय का वास्तविक अर्थ वस्तु का अंश है। ध्रुव, अन्वयी या सूक्ष्म तथा क्षणिक, व्यतिरेकी या क्रम-भावी के भेद से वे अंश दो प्रकार के होते हैं। अन्वयी को गुण और व्यतिरेकी को पर्याय कहते हैं । वे गुण के विशेष परिणमनरूप होती हैं । अंश की अपेक्षा यद्यपि दोनों ही अंश पर्याय हैं, पर रूढ़ि से केवल व्यतिरेकी अंश को ही पर्याय कहना प्रसिद्ध है।" 31
पर्याय के पर्यायवाची
पर्याय के पर्यायवाची नामों में विशेष, अपवाद, व्यावृत्ति, विकार, अवस्था, वृत्यंश, व्यवहार, विकल्प, भेद, पर्याय, पर्यव, पर्यय, परिणाम, अंश, भाग, विधा, प्रकार, भेद, छेद, भंग आदि हैं।
पर्याय की व्युत्पत्ति एवं लक्षण
248 :: जैनधर्म परिचय
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