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प्रकार के वचनों का प्रयोग किया जा सकता है। वे सात वचन इस प्रकार हैं -
1. है, 2. नहीं, 3. है और नहीं, 4. कहा नहीं जा सकता, 5. है, किन्तु कहा नहीं जा सकता, 6. नहीं है, किन्तु कहा नहीं जा सकता, 7. है और नहीं, किन्तु कहा नहीं जा सकता। इसको दार्शनिक परिभाषा में इस प्रकार कहा गया है1. स्यात् अस्ति एव 2. स्यात् नास्ति एव 3. स्यात् अस्ति-नास्ति एव 4. स्यात् अवक्तव्य एव 5. स्यात् अस्ति अवक्तव्य एव 6. स्यात् नास्ति अवक्तव्य एव 7. स्यात् अस्ति-नास्ति अवक्तव्य एव
इस प्रकार एक ही वस्तु में विरोध-रहित विधि और प्रतिषेध की कल्पना को सप्तभंगी कहते हैं। किसी भी पदार्थ एवं वस्तु के विषय में सात प्रकार के प्रश्न हो सकते हैं। इसका कारण जिज्ञासा है। जिज्ञासा भी सात प्रकार की ही होती है। जिज्ञासा का कारण संशय माना गया है और संशय का कारण वस्तु के सात प्रकार के धर्म माने गए हैं । वस्तु के स्वरूप को समझने के लिए सप्तभंगी अत्यन्त आवश्यक है। यहाँ घट का दृष्टान्त लेकर के सप्तभंगी समझने की कोशिश करेंगे तो इस प्रकार का स्वरूप बनेगा
1. घट द्रव्य अपेक्षा से नित्य है 2. घट पर्याय अपेक्षा से अनित्य है। 3. घट क्रम-विवक्षा से नित्य भी है और अनित्य भी है। 4. घट अवक्तव्य है, अर्थात् युगपद्-विवक्षा से अवक्तव्य भी है। 5. घट द्रव्य अपेक्षा से नित्य होने के साथ-साथ युगपद् विवक्षा से अवक्तव्य है। 6. पर्याय-अपेक्षा से घट अनित्य होने के साथ-साथ युगपद् विवक्षा से अवक्तव्य है।
7. द्रव्य और पर्याय की अपेक्षा से घट क्रमशः नित्य और अनित्य होने के साथ-साथ युगपद् विवक्षा से अवक्तव्य है।
इस तरह सप्तभंगी का प्रयोग करने से समस्त वस्तु स्वरूप का परिचय होता हैपारस्परिक कलह को दूर करता है। इससे साम्प्रदायिक मोह भी नष्ट होता है। स्याद्वाद को समझने के लिए सप्तभंगी आवश्यक है। स्यावाद को समझने के लिए सप्तभंगी
अनेकान्तवाद बनाम स्याद्वाद :: 195
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