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नहीं है।
द्रव्य-गुण-पर्याय में सर्वथा अभिन्नता ही नहीं, कथंचित् भिन्नता भी-द्रव्य-गुणपर्याय में परस्पर भिन्नता है या नहीं? – इस प्रश्न का उत्तर सीधे-सीधे या सर्वथा तो नहीं दिया जा सकता है। द्रव्य-गुण-पर्याय में कथंचित् अभिन्नता और कथंचित् भिन्नता होती है। कथंचित् अभिन्नता का कारण प्रदेश-भेद और अस्तित्व-भेद का अभाव है; जबकि कथंचित् भिन्नता का कारण संज्ञा, संख्या, लक्षण आदि हैं। अभेद विवक्षा में द्रव्य के अन्तर्गत उसके गुणों और उसकी त्रैकालिक स्वभाव-विभाव-रूप पर्यायों की योग्यताओं का कथन किया जाता है। ध्यान रहे इस अभेद विवक्षा में द्रव्य को किसी एक पर्याय-रूप अथवा किसी एक गुण-रूप नहीं देखा जाता, यदि हम उसे किसी एक पर्याय-रूप या एक गुण-रूप देखते हैं, तो इससे उसका अनन्त गुणात्मकपना और त्रिकालत्वपना खण्डित हो जाता है। हम यह कह सकते हैं कि इनमें दो द्रव्यों जैसी भिन्नता नहीं है, क्योंकि इनमें प्रदेश-भेद का अभाव है, इसे पृथक्त्व का निषेध कहते हैं, क्योंकि उनमें संज्ञा, संख्या, लक्षण, प्रयोजन आदि की अपेक्षा से भेद है, इसे अन्यत्व का समर्थन कहते हैं।
द्रव्य-गुण-पर्याय तीनों के नाम अलग-अलग हैं - यह संज्ञा-भेद है। द्रव्य एक है, गुण अनन्त हैं, पर्यायें अनन्तानन्त हैं - यह संख्या-भेद है। जो द्रव्य का लक्षण है, वही गुण या पर्याय का लक्षण नहीं है -यह लक्षण-भेद है। इसी प्रकार द्रव्य का प्रयोजन गुण-पर्यायों का भेद किये बिना अभेद अखण्ड वस्तु का ज्ञान कराना है तथा अध्यात्म की दृष्टि से निज-द्रव्य या आत्मा, ध्यान का विषय या आश्रय करने योग्य उपादेय है - यह द्रव्य का प्रयोजन है। गुण का प्रयोजन द्रव्य की महिमा उत्पन्न कराने हेतु उसकी विशेषताओं को बताना है; जबकि पर्याय का प्रयोजन द्रव्य-गुण के कार्यों को बताना है - यह प्रयोजन-भेद है। ___द्रव्य का विशेष स्वरूप-जो स्वभाव को छोड़े बिना, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से संयुक्त है, गुणवान् है, पर्याय-सहित है; वह द्रव्य है -ऐसा सर्वज्ञदेव ने कहा है। प्रत्येक द्रव्य में अनन्त गुण होते हैं और उस द्रव्य और उसके गुणों की प्रति-समय एक सूक्ष्म पर्याय होती है, अत: यदि ज्ञानचक्षु से देखा जाए तो प्रत्येक द्रव्य, प्रतिसमय अनन्त गुणों एवं उनकी त्रिकालवर्ती अनन्त पर्यायों का अखण्ड पिण्ड दिखाई देता है। द्रव्य, गुण और पर्याय में यद्यपि कथन की अपेक्षा क्रम दिखायी देता है; इसप्रकार ये-सब एकरसात्मक एक अखण्ड वस्तु हैं।
द्रव्य की अनेक व्याख्याएँ जिनागम में प्राप्त होती हैं -कहीं पर गुण-पर्यायवान् को द्रव्य कहा है, कहीं पर मात्र गुणों के समूह को द्रव्य कहा है। कहीं पर त्रिकालवर्ती पर्यायों के समूह को द्रव्य कहा है, कहीं पर उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य सहित को सत् और सत् को द्रव्य का लक्षण कहा है, कहीं पर अन्वय को द्रव्य कहा है, तो कहीं पर उक्त सभी के समुच्चय को द्रव्य कहा है।
244 :: जैनधर्म परिचय
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