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वर्तमान में इस क्षेत्र का बहुत विस्तार हो चुका है।
जबलपुर-दमोह मार्ग पर ही कैमूर पर्वत की तलहटी में हिरन नदी के तट पर अवस्थित अतिशयक्षेत्र कोनीजी क्षेत्र की प्रसिद्धि बढ़ गई है। यहाँ के गर्भ मन्दिर की प्रसिद्धि दैवीय चमत्कारों से अधिक रही है। विघ्नहर पार्श्वनाथ मन्दिर में लोग मनौती मनाने आते हैं। कुल नौ मन्दिर हैं। जिनमें सहस्रकूट जिनालय और नन्दीश्वर जिनालय का अपना महत्व है।
एक अन्य अतिशयक्षेत्र उदयगिरि विदिशा से छह कि.मी. पर अवस्थित है। यहाँ की बलुआ पाषाण और परतदार चट्टानों को काटकर गुफाएँ निर्मित हैं, जिनकी संख्या बीस है। गुफा क्र. 1 और 20 जैनों से सम्बन्धित हैं। यहाँ एक दीवार में गुप्तसंवत् 106 का अभिलेख अंकित है। इसकी पहली पंक्ति 'नमः सिद्धेभ्यः...' से प्रारम्भ हुई है।
मध्यप्रदेश के ही एक प्राचीन जनपद मालव-अवन्ती' में मक्सी पार्श्वनाथ, वदनावर, गन्दर्भपुरी, चूलगिरि, पावागिरि, सिद्धवरकूट, वनैडिया आदि क्षेत्रों की गणना की जाती है। यहाँ इनका नामोल्लेख कर देना ही काफी होगा।
राजस्थान में कोई सिद्धक्षेत्र नहीं है, न ही कल्याणकक्षेत्र। जो कुछ हैं वे या तो अतिशयक्षेत्र हैं (जिनकी संख्या लगभग बीस है) या फिर कलाक्षेत्र के प्रसिद्ध नमूने हैं। ऋषभदेव केसरिया, नागफणी पार्श्वनाथ, बिजौलिया, केशोराय पाटन, पद्मपुरा, श्रीमहावीरजी, चमत्कारजी, चाँदखेड़ी, झालरापाटन, तिजारा आदि अतिशयक्षेत्र माने गये हैं।
श्रीमहावीरजी
दिगम्बर जैन अतिशयक्षेत्र, श्रीमहावीरजी राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में दिल्ली-मुम्बई हाइवे पर रेलवे स्टेशन से छह कि.मी. की दूरी पर अवस्थित है। तीर्थ के एकदम निकट गम्भीर नदी बहती है। यहाँ भगवान महावीर की अतिशय सम्पन्न जिस मूर्ति की ख्याति है, वह भूगर्भ से प्राप्त हुई थी। किंवदन्ति है कि एक ग्वाले की गाय जंगल से चरकर जब घर लौटती तो उसके थन दूध से खाली हो जाते। एक दिन उस ग्वाले ने उस रहस्य को जानना चाहा। पता चला कि गाय एक टीले पर खड़ी है। उसके थनों से दूध स्वतः झर रहा है। ग्वाले को यह घटना एक पहेली की तरह लगी। उसने उस स्थान की खुदाई की तो इस मनोहारी मूर्ति के दर्शन हुए। बस फिर क्या था, जैन समाज के प्रमुख लोगों की वहाँ भीड़ लग गयी। पश्चात् समारोहपूर्वक मूर्ति को लाकर मन्दिर में विराजमान कर दिया गया। लोग अतिशयों से आकर्षित होकर दर्शनार्थ आने लगे
और धीरे धीरे यह स्थान विशाल तीर्थ बन गया। आज राजस्थान का यह सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है।
भगवान महावीर की इस मूर्ति का शिल्पांकन गुप्तकाल के बाद का है। यह ठोस
जैनतीर्थ :: 109
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