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पृथ्वी आदि पाँच एकेन्द्रिय जीवों को स्थावर और दो इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय पर्यन्त जीवों को त्रस नाम दिया गया है। जबकि अन्य किसी दर्शन में ऐसा वर्गीकरण उपलब्ध नहीं होता। पुद्गल द्रव्य के भी अणु और स्कन्ध,-ये दो मूल भेद जैनदर्शन ने माने हैं। वैशेषिक दर्शन के अतिरिक्त अन्य किसी दर्शन में इस प्रकार का विवेचन नहीं है। अन्य द्रव्यों के बारे में जो भेद की चर्चा ऊपर हो चुकी है, वही अन्तिम है, अन्य कोई नवीन वर्गीकरण नहीं मिलता है।
सन्दर्भ 1. मूल शरीर को पूर्णतः छोड़े बिना जीव के प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना समुद्घात
कहा गया है। 2. आकाश के जितने क्षेत्र को अविभागी पुद्गल परमाणु घेरता है, उसे 'प्रदेश' कहते हैं। 3. संख्येयासंख्येयाश्च पुद्गलानाम्। (तत्त्वार्थसूत्र, 5/10) 4. असंख्येयाः प्रदेशा धर्माधमैकजीवानाम्। (तत्त्वार्थसूत्र, 5/8) 5. द्रष्टव्य पंचास्तिकाय-सार-संग्रह, गाथा 7-15, प्रवचनसार, ज्ञानतत्त्व प्रज्ञापन अधिकार एवं
ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन अधिकार। 6. दव्वपरिवट्टरूवो जो सो कालो हवेइ ववहारो। ___परिणामादीलक्खो, वट्टणलक्खो य परमट्ठो॥ (द्रव्यसंग्रह, 1/21) 7. आलाप पद्धति, पृष्ठ 140, आवश्यक नियुक्ति वृत्ति 978, न्याय विनिश्चय विवरण, पृष्ठ
428, परीक्षामुख सूत्र 4/8 8. प्रवचनसार, तत्त्वप्रदीपिका टीका, गाथा 92 9. पंचास्तिकाय, तात्पर्यवृत्ति, गाथा 16, पृष्ठ 35 10. पंचास्तिकाय, तात्पर्यवृत्ति, गाथा 16, पृष्ठ 36 11. नयचक्र-वृत्ति 22, 24 12. नियमसार तात्पर्यवृत्ति, गाथा 168 13. न्यायदीपिका 3/77 14. गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्त्वप्रदीपिका 561, आर्या 1 15. तत्त्वार्थसूत्र 1/7 16. सर्वार्थसिद्धि टीका 1/2 17. तत्त्वार्थराजवार्तिक 2-1-6 18. तत्त्वानुशासन 111 19. तत्त्वार्थराजवार्तिक 1-2-6 20. तत्त्वार्थसूत्र 1/4 21. द्रष्टव्य-सर्वार्थसिद्धि टीका 9/7, भगवती आराधना गाथा 1849, बारस अणुवेक्खा गाथा
67 इत्यादि। 22. द्रष्टव्य-सर्वार्थसिद्धि टीका, 6/20, तत्त्वार्थराजवार्तिक 6-12-7 एवं गोम्मटसार कर्मकाण्ड ___जीवतत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 548 23. द्रष्टव्य-भगवती आराधना गाथा 38 की टीका एवं पंचास्तिकाय-संग्रह की तात्पर्यवृत्ति
टीका गाथा 108
तत्त्व-मीमांसा : 173
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