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होती हैं। कर्म के प्रवाह के दृष्टिकोण से आत्मा और कर्म का सम्बन्ध अनादि होता
है।
___कर्म के प्रभाव के कारण प्रत्येक संसारी आत्मा को विभिन्न रूपान्तरणों से गुजरना होता है। विश्व में जो विभिन्न प्रकार के रूपान्तरण दिखायी देते हैं, वे सभी इन्हीं संसारी आत्माओं के रूपान्तरणों के कारण होते हैं।
यह सम्पूर्ण दृष्टिगोचर विश्व पुद्गलास्तिकाय जो कि आधुनिक पदार्थ का पर्याय है, से बना है। शेष पाँच पदार्थों में होने वाले परिवर्तन से ही विश्व में होने वाले परिवर्तनों का बोध होता है। __परमाणु (पदार्थ का अदृश्य अंश) से लेकर सभी आकाशीय पिण्ड जैसे सूर्य, चन्द्र, उपग्रह आदि अब persistence through mode के सिद्धान्त के अनुसार ये सभी पदार्थ के पर्याय है। सभी भौतिक पिण्डों का अन्तिम कारण परमाणु है। वे एक-दूसरे से प्रतिक्रिया करते रहते हैं और भौतिक संसार को बनाते-बिगाड़ते रहते हैं। संसार की सभी भौतिक सत्ताएँ पुद्गल के विभिन्न रूपान्तरणों के कारण बनती-बिगड़ती रहती हैं। ये रूपान्तरण दो प्रकार के होते हैं-1. स्वतः और 2. निमित्त। आत्मा और पुद्गल के अनेक प्रकार के परिवर्तन और संयोग से बहुरूपता आती है। इन सभी रूपान्तरणों के बावजूद अन्तिम पदार्थ अस्तित्व में आता है। परमाणु और जीव सनातन रहते हैं।
परमाणु और स्कन्ध के इसी सिद्धान्त के आधार पर सांसारिक संरचनाओं की प्रत्यक्ष सनातनता की समस्या को हल किया जा सकता है। सांसारिक संरचनाएँ भी पुद्गल से बनी हुई हैं। प्रश्न यह है कि ये स्थायी रूप से कैसे बनी रहती हैं? इसे पुद्गल के रूपान्तरणों के आधार पर समझा जा सकता है। स्कन्धों का विश्लेषण और नवीनता प्रकृति के नियमानुसार होती है। उसी प्रकार परमाणुओं का स्वाभाविक रूपान्तरण होता है। इन सभी रूपान्तरणों से सांसारिक संरचनाओं के निहित पुद्गलों के नये-नये पर्याय बनते हैं, किन्तु रूपभेद के बावजूद भी इन संरचनाओं का अस्तित्व बना रहता है। उनसे प्रतिक्षण बडी संख्या में परमाणु उनसे मिलते रहते हैं। काफी समयान्तराल बाद ऐसा होता है कि एक समय में सांसारिक संरचनाओं में रहने वाले परमाणु उनसे पृथक् हो जाता है, साथ ही उनमें नये परमाणु शामिल हो जाते हैं। इसप्रकार यद्यपि संरचना के पर्याय में परिवर्तन होता है फिर भी संरचना अपने आप में स्थायी रूप से अस्तित्व में रहती है।
प्रकृति की उपर्युक्त घटनाओं को भवन के उदाहरण से अच्छी तरह समझा जा सकता है। भवन के स्वामी और उसके उत्तराधिकारी भवन के क्षतिग्रस्त भागों को बदलते रहते हैं। भविष्य में एक दिन ऐसा भी आता है जब भवन के मूल अंशों (भागों) के स्थान पर नये अंश स्थापित कर दिए जाते हैं, किन्तु लोगों के लिए यह वही भवन होता है जो सौ साल पहले था। यह भी सत्य है, कि वंश परम्परा का अन्त है और
180 :: जैनधर्म परिचय
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