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• जबकि सत्य का पूर्ण परिचय वह नहीं है, जिसमें सारा का सारा सत्य होता है
और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं होता है, जो बिना किसी विरोधाभास वाले पूर्ण अनुभव पर आधारित होता है। . • और अन्त में सभी भाषाएँ चाहे वह हिन्दी हो या गणित केवल अनुभव के बारे
में चर्चा कर सकती हैं और अनुभव का वर्णन स्वयं अनुभव नहीं हो सकता। • वैज्ञानिक खोज और अनुभव की प्रत्यक्ष अन्तर्दृष्टि दोनों के साथ यह समस्या समान
रूप से सामने आती है।
भौतिकी में एकता और अनेकता __ भौतिक सत्यता के बारे में हमारी ठोस सोच सत्य की एकता व अनेकता की समस्या खड़ी कर देती है। ऐसा लगता है कि हमारे अपूर्ण और अलग-अलग अनुभव अनन्त टुकड़े और मौलिक अंश प्रकट कर देते हैं। किन्तु आधुनिक भौतिकी (जैसे क्वांटम सिद्धान्त) बताती है कि हम जिसको पूर्ण स्वतन्त्र अस्तित्व वाले बहुत सूक्ष्म इकाइयों में नहीं तोड़ सकते, पदार्थ के अति सूक्ष्म कण वास्तव में कण नहीं होते। यह केवल आदर्शीकरण है। ये प्रायोगिक दृष्टि से उपयोगी हो सकते हैं, किन्तु इनका कोई मौलिक महत्त्व नहीं होता• क्वांटम सिद्धान्त के जनक नील बोर भी कहते हैं
Isolated material particles are abstrations (पदार्थ के पृथक् कण अमूर्त होते
• यद्यपि क्वांटम सिद्धान्त की भी विरोधी परिकल्पनाएँ हैं फिर भी वे वस्तुओं और __ घटनाओं के अन्तःसम्बन्धित होने को स्वीकार करती हैं। जैनदर्शन में एकता और अनेकता
__ जैन अनेकान्तवाद जिस प्रकार पूर्ण अनेकता को एक ही सत्य के दो पहलू मानता है, उसी प्रकार वह न तो स्वतन्त्र मूल कण को सत्य मानता है और न ही केवल सम्पूर्ण विश्व को सत्य मानता है। बल्कि वह इन्हें एक ही सत्य के दो पहलू मानता
दार्शनिक जगत में यह विचारधारा है कि संसार की रचना ईश्वर द्वारा हुई है। जैनदर्शन में इस मत का पर्याप्त खंडन हुआ है। जैनदर्शन का दृढ़ विश्वास है कि विश्व का अस्तित्व सनातन है, अपने आप बना है, किसी ने बनाया नहीं है। 'विश्व की आयु क्या है?' इस गूढ़ प्रश्न का यही उत्तर है। सृष्टि की रचना सम्बन्धी अन्य मत भ्रामक हैं।
जैनदर्शन अनेकान्तवाद की वकालत करता है और एकान्तवादी दृष्टिकोण का खंडन
178 :: जैनधर्म परिचय
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